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________________ 6.2 अभिव्यक्ति का महत्त्व __ मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सम्यक् अभिव्यक्ति ही उसके सुसंगत एवं सुव्यवस्थित सामाजिक जीवन की आधारशिला है। वह समाज में जन्म लेता है, बड़ा होता है और जीवनपर्यन्त समाज में ही जीता है। अपने जीवनकाल में वह हजारों व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है और अभिव्यक्ति के माध्यम से ही वह विचारों और भावों का आदान-प्रदान कर पाता है। वर्तमान में सामुदायिक जीवन मुख्यतया सफल संप्रेषण-कौशल (Communication Skill) पर ही निर्भर होता जा रहा है। अपने बच्चे को चूमती हुई माँ, मोबाईल पर बातचीत करता हुआ नवयुवक, गले मिलते हुए दोस्त, हाथ फैलाता हुआ भिखारी, कक्षा में पढ़ाता हुआ अध्यापक, हाथ जोड़ता हुआ नेता, निर्देश देता हुआ अधिकारी आदि अनेकानेक प्रसंग जीवन में सम्प्रेषण की महत्ता को प्रतिपादित करते हैं। डॉ. सागरमल जैन ने तो यहाँ तक कहा है कि यदि किसी साधारण व्यक्ति को ऐसे स्थान पर बन्दी बना दिया जाए, जहाँ पर उसे जीवन जीने की सारी सुविधाएं उपलब्ध हों, किन्तु वह अपनी अनुभूतियों एवं भावनाओं की अभिव्यक्ति न कर सके, तो निश्चय ही उसे जीवन निःसार लगने लगेगा, सम्भव है वह कुछ समय के पश्चात् पागल होकर आत्महत्या भी कर ले। इससे हम समझ सकते हैं कि हमारे जीवन में सम्प्रेषण का कितना महत्त्व है। यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु पशु-पक्षी भी बिना अभिव्यक्ति के नहीं जी सकते। वास्तव में दूसरों को अपनी आत्माभिव्यक्ति में सहभागी बनाना और दूसरों की आत्माभिव्यक्ति में सहभागी बनना, यह प्राणी की सहज स्वाभाविक प्रवृत्ति है।" इस पारस्परिक सहभागिता की प्रवृत्ति को ही तत्त्वार्थसूत्र में जैनाचार्य उमास्वाति ने ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्' के द्वारा स्पष्ट किया है।" प्राणी-जीवन में संप्रेषण की आवश्यकता अनिवार्य है। संप्रेषण ही एकमात्र ऐसा माध्यम है, जिससे प्राणी एक-दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है। घर, दुकान, रेस्त्रां, बस-स्थानक, रेल-स्थानक, विद्यालय, अस्पताल, सब्जी बाजार आदि कोई भी स्थान क्यों न हो, हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति तब तक नहीं हो सकती, जब तक हम अपनी सम्यक् भावाभिव्यक्ति नहीं करेंगे।18 रोटी, कपड़ा और मकान के पश्चात् सम्यक् संप्रेषण करना जीवन की एक अतिमहत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। हमेशा से ही व्यक्ति, समाज और विश्व का अस्तित्व एवं विकास केवल स्वस्थ संप्रेषण पर ही आधारित रहा है। जिस समुदाय की संप्रेषण–प्रणाली जितनी अधिक विकसित होती है, उसकी प्रगति की गति भी उतनी ही तीव्र होती है। इसी महत्ता को समझकर आधुनिक युग में संचार क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हुई है। इससे ही इस युग को '3G स्पेक्ट्रम' की संज्ञा भी दी जाती है। टेलीफोन, मोबाईल, फैक्स, ई-मेल, इंटरनेट आदि कई प्रकार के संचार–साधनों के आविष्कारों ने विश्व-सम्प्रेषण अध्याय 6 : अभिव्यक्ति-प्रबन्धन 309 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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