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मनुष्य ने विविध भाषाओं एवं बोलियों का विकास किया है। अतः यह सुनिश्चित है कि मनुष्य में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने की अद्वितीय, अनुपम और अतुलनीय क्षमता है। इसी से मनुष्य की सर्वश्रेष्ठता सिद्ध होती है। अभिव्यक्ति की इस अतिविकसित क्षमता का सम्यक् दिशा में नियोजन किस प्रकार से किया जाए, इसकी चर्चा जैनाचार के आधार पर आगे की जाएगी।
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जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व
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