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________________ (2) शाब्दिक या वाचिक (ध्वन्यात्मक) अभिव्यक्ति यह अभिव्यक्ति अधिक सुस्पष्ट एवं विकसित है, जो शब्द या ध्वनि का प्रयोग करके की जाती है। जैनदर्शन के अनुसार, एकेन्द्रिय जीव अभाषक होते हैं, अतः इनमें ध्वनि-संकेतों के माध्यम से आत्माभिव्यक्ति असम्भव है, शेष सभी प्राणी भाषक होते हैं, वे ध्वनि संकेतों से अपनी अभिव्यक्ति करते हैं। जहाँ एक ओर शारीरिक अभिव्यक्तियाँ अश्रवणीय होती हैं, वहीं दूसरी ओर ध्वन्यात्मक अभिव्यक्तियाँ सुनी जा सकती हैं। ध्वनि भी दो प्रकार की होती है – भाषात्मक एवं अभाषात्मक। भाषात्मक ध्वनि मुख से उत्पन्न होती है, जबकि अभाषात्मक ध्वनि कोई भी दो वस्तुओं के आघात से उत्पन्न होती है। अभाषात्मक ध्वनि के अन्तर्गत मेघगर्जना, बाँसुरी-वादन, शंखनाद, घण्टी बजाना आदि आते हैं। इनकी विशेषता यह है कि ये जड़-निमित्तक होने से ‘वैस्रसज' / 'स्वभावज' (Natural) भी होते हैं एवं मनुष्य-निमित्तक होने से 'प्रयोगज' (Manual) भी होते हैं। उदाहरणस्वरूप, मेघगर्जना वैस्रसज है, जबकि घण्टी का बजना प्रयोगज है।1० जहाँ तक ध्वनि का प्रश्न है, यह भले ही वैस्रसज और प्रयोगज – दोनों प्रकारों की होती हो, लेकिन जहाँ तक ध्वन्यात्मक अभिव्यक्ति का सवाल है, यह तो हमेशा प्रयोगज ही होती है। वैस्रसज ध्वनियाँ इस अध्याय की विषय-वस्तु से परे हैं। प्रयोगज ध्वनियों में से भी अभाषात्मक की अपेक्षा भाषात्मक ध्वनि अधिक सहज एवं स्वभाविक होती है। इस भाषात्मक ध्वनि को ही हम वाणी या वचन भी कह सकते हैं और इसके प्रबन्धन-सूत्रों का प्रतिपादन करना ही इस अध्याय का प्रमुख प्रतिपाद्य है। यह भाषात्मक ध्वनि पुनः दो प्रकार की होती है - क) अक्षरात्मक भाषा और ख) अनक्षरात्मक भाषा।1 अक्षरात्मक भाषा का प्रयोग अक्षर, पद एवं वाक्य के रूप में होता है और यह अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम साधन है, परन्तु यह योग्यता भी हर प्राणी में नहीं होती। जैनाचार्यों ने स्पष्ट कहा है कि भले ही एकेन्द्रिय के अतिरिक्त सभी प्राणियों में भाषाभिव्यक्ति की योग्यता होती है, लेकिन अक्षरात्मक-भाषाभिव्यक्ति की क्षमता तो सिर्फ मनुष्यों में ही होती है। यहाँ तक कि कितने ही संज्ञी (समनस्क) पशु-पक्षियों में चिन्तन-मनन-विचार की शक्ति तो होती है, लेकिन अक्षरात्मक-भाषाभिव्यक्ति की नहीं के बराबर। वस्तुतः, किसी भी पशु-पक्षी को क्यों न लिया जाए, उसकी भाषा के शब्द बहुत सीमित हैं। वैज्ञानिकों ने परीक्षण के बाद यह पाया है कि बंदरों की भाषा में छह या सात शब्द ही होते हैं। किसी पक्षी की भाषा में तीन शब्द हैं, तो किसी की भाषा में पाँच। इसका अर्थ यह है कि पशु-पक्षियों का कोई शब्दकोश ही नहीं होता। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है. जिसने समर्थ शब्दकोश का निर्माण किया है। अभिव्यक्ति की इसी शक्ति के आधार पर 307 अध्याय 6: अभिव्यक्ति-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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