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________________ 129 प्रवचनसारोद्धार, 1, पृ. 107 166 दशवैकालिकसूत्र, 4/16 130 अभक्ष्य अनंतकाय विचार, प्राणलाल मेहता, पृ. 51 से उद्धृत 167 योगशास्त्र, 3/65 131 रिसर्च ऑफ डायनिंग टेबल, आ.हेमरत्नसूरि, 168 यजुर्वेद आह्निक, 24/19 (रात्रिभोजनत्याग आवश्यक क्यों?, पृ. 37-39 सा. स्थितप्रज्ञा, पृ. 14 से उद्धृत) 132 प्रेक्षाध्यान (पत्रिका), जनवरी, 2007, पृ. 22 169 रात्रिभोजनत्याग आवश्यक क्यों?, सा.स्थितप्रज्ञा, 133 वही, पृ. 22 पृ. 16 134 उत्तराध्ययनसूत्र, 32/10 170 जैनआचार, देवेन्द्रमुनि, पृ. 872-873 135 प्रवचनसारोद्धार, 1, पृ. 101 171 योगशास्त्र, 3/60 136 प्रेक्षाध्यान (पत्रिका), जनवरी 2007, पृ. 22 172 डॉ.एम.भण्डारी से चर्चा के आधार पर 137 पंचुंबरि चउविगई हिम-विस-करगे अ सव्व-मट्टि अ। 173 सागारधर्मामृत, आशाधर, 4/24 राइ-भोयणगं चिय बहु-बीअ अणंत-संधाणा।। 174 रात्रिभोजनत्याग आवश्यक क्यों?, सा.स्थितप्रज्ञा, घोलवडा वायंगण अमुणिअ-नामाई पुष्फ-फलाई। पृ. 7 तुच्छ-फलं चलिअ-रस वज्जे वज्जाणि बावीसं।। 175 उपासकाध्ययन, आ.ज्ञानभूषण, 9/28-29 - अभक्ष्य अनंतकाय विचार, प्राणलालमेहता, पृ. 3 176 सागारधर्मामृत, आशाधर, 6/20 138 अमोलसूक्तिरत्नाकर, कल्याणऋषि, 64/4 177 वही, 6/20 139 दशवैकालिकसूत्र, 9/3/4 178 आहार और अध्यात्म, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 15-16 140 प्रश्नव्याकरणसूत्र, 2/1/116 179 प्रेक्षाध्यान (पत्रिका), जनवरी, 2007, पृ. 27 141 दशवैकालिकसूत्र, 5/1/129-130 180 प्रवचनसारोद्धार, 1, पृ. 405 142 अभक्ष्य अनंतकाय विचार, प्राणलाल मेहता, पृ. 3 181 मूलाराधनादर्पण, पृ. 427 (वही, पृ. 545 से उद्धृत) 143 उत्तराध्ययनसूत्र, 17/11 182 व्याख्याप्रज्ञप्ति, 7/1 (जैनआचार, देवेन्द्रमुनि, पृ. 545 से 144 विज्ञान (कक्षा 9), पृ. 203 उद्धृत) 145 युवादृष्टि (पत्रिका), जनवरी, 2010, पृ. 32-33 183 व्यवहारभाष्य, 3682 एवं 3684 146 साधना के सूत्र, मधुकरमुनि, पृ. 220 184 वही, 3701-3702 147 दशवैकालिकसूत्र, 5/1/123 185 महावीर का स्वास्थ्यशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 81-82 148 वही, 6/22 186 उत्तराध्ययनसूत्र, 32/11 149 श्राद्धविधिप्रकरण, पृ. 237 187 निशीथभाष्य, 2951 150 कल्याण, आरोग्यअंक, पृ. 137 188 थोवो हारो थोव भणिओ जो होई थोव निद्दोय। 151 योगशास्त्र, 3/62 थोवो वही उवगणणो तस्सहु देवावि पणमंति।। 152 बुभुक्षाकालो भोजनकालः - नीतिवाक्यामृत, 25/29 - निशीथभाष्य (जैनधर्म में विज्ञान, डॉ.नारायणलाल 153 योगशास्त्र, 1/52 कच्छारा, पृ. 140 से उद्धृत) 154 नीतिवाक्यामृत, 27/13 189 ओघनियुक्ति, 578 155 योगशास्त्र, 1/52 190 जैनधर्म में विज्ञान, डॉ.नारायणलाल कच्छारा, पृ. 141 156 वही, 1/52 191 गुडबॉय, प. वैराग्यरत्नविजय, पृ. 57 157 श्रीमद्राजचन्द्र, पत्रांक 19, पृ. 148 192 महावीर का स्वास्थ्यशास्त्र, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 83 158 कल्याणकारक, श्रीउग्रादित्याचार्य, 4/16 193 जैनधर्म में विज्ञान, डॉ.नारायणलाल कच्छारा, पृ. 141 159 स्थानांगसूत्र, 9/13 194 दशवैकालिकसूत्र, 5/1/118-130 160 दशवैकालिकसूत्र, 5/1/124 195 कल्याणकारक, श्रीउग्रादित्याचार्य, 4/17 161 उत्तराध्ययनसूत्र, 26/12 196 अष्टांगसंग्रहः, डॉ.रविदत्त त्रिपाठी, 10/26 162 श्राद्धविधिप्रकरण, 1/8 197 आहार और अध्यात्म, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 39 163 आयुर्वेदसिद्धांतरहस्य, आ.बालकृष्ण, पृ. 139 198 वही, पृ. 39 164 दशवैकालिकसूत्र, 3/2 199 श्राद्धविधिप्रकरण, पृ. 234-237 165 विशेषावश्यकभाष्य, 1244-1245 200 कल्याणकारक, श्रीउग्रादित्याचार्य, 4/19 303 अध्याय 5 : शरीर-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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