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________________ 457 65 स्थानांगसूत्र, 9/13 102 कबीर जंत्र न बाजई, टूटि गए सब तार । 66 निशीथभाष्य, 4159 जंत्र बिचारा क्या करै, चलै बजावणहार ।। 67 हिन्दीसूक्ति-संदर्भकोश, महो.चन्द्रप्रभसागर, पृ. 91 - कबीर ग्रंथावली, डॉ.भगवत्स्वरूप मिश्र, पृ. 185 68 वज्जालग्गं, 8/9 (प्राकृतसूक्तिकोश, महो.चन्द्रप्रभसागर, पृ. 103 उत्तराध्ययनसूत्र, अ. 27 68 से उद्धृत) (अभिधानराजेन्द्रकोष, 2/416 से उद्धृत) 69 काले कालं समायरे – उत्तराध्ययनसूत्र 1/31 104 (क) कल्याणकारक, श्रीउग्रादित्याचार्य, 2/4 70 निशीथभाष्य, 4159 (ख) आयुर्वेद द्वारा संपूर्ण स्वास्थ्य, डॉ.गोविन्द प्रसाद 71 उत्तराध्ययनसूत्र, 16/12-13 उपाध्याय, पृ. 22 72 जीवनविज्ञान और स्वास्थ्य (एम.ए.पुस्तक), 1/2/9 105 नयामानव नयाविश्व, आ.महाप्रज्ञ, पृ. 104 73 वही, 1/2/13 106 वही, पृ. 104 74 वही, 1/2/11 107 व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, 14/5, पृ. 388 75 वही, 1/2/12 108 ओघनियुक्ति, 578 76 वही, 1/2/13 109 निशीथभाष्य, 4159 77 वही, 1/2/14 110 व्यवहारभाष्य, 4356 78 आरोग्यअंक, गीताप्रेस, गोरखपुर, पृ. 123-125 111 अमोलसूक्तिरत्नाकर, कल्याणऋषि, 64/14 79 वही, पृ. 125 112 प्रेक्षाध्यान (पत्रिका), जनवरी, 2007, पृ. 5 80 जीवनविज्ञान और स्वास्थ्य (एम.ए.पुस्तक), 1/2/15 113 (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 35/17 81 वही, 1/2/17 (ख) दशवैकालिकसूत्र, 5/205 82 वही, 3/12/1 114 (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 26/33, 35 83 Understanding Psychology, Robert S. Feldman, p. (ख) स्थानांगसूत्र, 6/41, 42 (ग) ओघनियुक्तिभाष्य, 290-291 84 श्राद्धविधिप्रकरण, 1/5, 2/10 (घ) मूलाचार, 478-480 85 महाभारत, 12/243/6 115 मूलाचार, 481 86 आचारांगसूत्र, 1/2/1/3 116 श्रीमद्भगवद्गीता, 17/7 87 कल्याण (जीवनचर्याअंक), 2010, पृ. 419 117 प्रेक्षाध्यान (पत्रिका), जनवरी, 2007, पृ. 29 88 वही, पृ. 420 118 वसुनन्दिश्रावकाचार, 86 89 वही, पृ. 415 119 वही, 59 90 वही, पृ. 415 120 मंसं अमेज्झ सरिसं किमिकुलभरियं दुगंधबीमत्छ। 91 निशीथभाष्य, 48 पाएण छिवेउं जं ण तीरए त कहं भोत्तुं ।। 92 उत्तराध्ययनसूत्र, 23/56 - वही, 85 93 जीवनविज्ञान और स्वास्थ्य (एम.ए.पुस्तक), 5/18/3 121 कल्याण, आरोग्यअंक, पृ. 404 94 भक्तपरिज्ञा, 84 122 शाकाहार या मांसाहार फैसला आप स्वयं करें, गोपीनाथ 95 विशेषावश्यकभाष्य, 199 अग्रवाल, पृ. 34-35 96 आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान, अरुणसिंह, पृ. 338 123 अष्टकप्रकरणम्, 14-16 97 व्यवहारभाष्य, 1028 (जैनआचार, देवेन्द्रमुनि, पृ. 276 से उद्धृत) 98 जैनधर्म में विज्ञान, डॉ. नारायणलाल कच्छारा, पृ. 121 124 शराब से मुक्त समाज की ओर, मे फ्लॉवर, 99 स्वस्थहत्त समुच्चय, स्व. राजेश्वरदत्त शास्त्री, पृ. 2 पृ. 26-30 100 उत्तराध्ययनसूत्र, 23/71 125 उपदेशप्रासाद, पृ. 221 101 अथ खल्वियं दैवि वीणा भवति - ऐतरेय आरण्यक, 126 शाकाहार या मांसाहार फैसला आप स्वयं करें, गोपीनाथ 3/2/5 अग्रवाल, पृ. 34 (सूक्तित्रिवेणी, उपा.अमरमुनि, पृ. 188 से उद्धृत) 127 सुश्री शिखा डांगी (डायटिशियन) से चर्चा के आधार पर 128 उपदेशप्रासाद, 2/8, पृ. 222 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 302 76 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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