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________________ सन्दर्भसूची (ग) डॉ. रणजीत मालू एवं डॉ. मनोहर भण्डारी से चर्चा के आधार पर 1 अभिधानचिन्तामणिः, 3/227-228. 30 शरीरसंबंधीज्ञान, केथरिन आर्मस्ट्राँग, पृ. 138-140 2 जीवविचारप्रकरण, पृ. 95 31 वही, पृ. 188 3 कर्मग्रंथ, 1/33 32 जीवविज्ञान (कक्षा 12), पृ. 157 4 तत्त्वार्थसूत्र, 2/10 33 डॉ.एम.भण्डारी से चर्चा के आधार पर 5 वही, 6/1 34 उत्तराध्ययनसूत्र, 23/73 6 वही, 6/2 35 श्रीमद्देवचंद्र, वर्तमान चौबीसी, 8/10 7 कर्मग्रंथ, 1/3 36 सहजसुखसाधन, ब्र.सीतलदास, पृ. 51 8 वही, 1/23, पृ. 89-90 37 भावप्राभृत, 37 9 तन्दुलवैचारिकप्रकीर्णक, डॉ.सुभाष कोठारी, भूमिका, 38 मूलाचार, 33 पृ. 9. 39 शांतसुधारस, 6/1 10 दृष्टार्थशारीरम्, आयुर्वेदाचार्य वैद्य प.ग आठवले, 40 ज्ञानार्णवः, 2/6/10 पृ. 12 41 नरो वै देवानां ग्रामः - ताण्ड्य महाबाह्मण - 6/9/2 11 तन्दुलवैचारिकप्रकीर्णक, डॉ.सुभाष कोठारी,, पृ. 44 (सूक्तित्रिवेणी, उपा.अमरमुनि, पृ. 156 से उद्धृत) 12 असुइ विलिविले गमे वसमाणो वत्थिपउलपच्छण्णो। 42 शांतसुधारस, 6/गेयाष्टक/7 मादू इसिभ लालाइयं तु तिव्वा सुहं पिबदि।। 43 दुल्लहे खलु माणुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं। - - मूलाचार, 72 उत्तराध्ययनसूत्र, 10/4 13 भगवतीआराधना, 1001-1004 44 भावनास्रोत, सा.सुलक्षणाश्री, 2/143 14 तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक, डॉ.सुभाष कोठारी, पृ. 45-55 45 स्थानांगसूत्र, 4/630 15 पुष्पपराग, मुनिजयानंदविजय, 88 46 उत्तराध्ययनसूत्र, 3/1 16 तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक, 64 47 आनन्दघनपदसंग्रह, 432 17 वही, 108 48 हिन्दीसूक्ति-सन्दर्भकोश, महो.चन्द्रप्रभसागर, पृ 98 18 सर्वार्थसिद्धि, 2/36, पृ. 139 49 वही, पृ. 98 19 पूरण गलनान्वर्थसंज्ञत्वात् पुद्गलाः – तत्त्वार्थराजवार्त्तिक, 50 श्रीमद्राजचन्द्र, शिक्षापाठ 67, अमूल्यतत्वविचार 1, 5/1/24, पृ. 434 पृ. 109 20 कर्मग्रंथ, 1/34 51 मनुष्य में देवत्व का उदय, पं.श्रीरामशर्मा, पृ. 5.8 21 तत्त्वार्थसूत्र, 2/17-18 52 अमोलसूक्तिरत्नाकर, कल्याणऋषि, 69/1 22 अणुजाणह संथारं, बाहुवहाणेण वाम-पासेण। 53 ज्ञानार्णवः, 2/6/9 - ओघनियुक्ति, 205 54 उत्तराध्ययनसूत्र, 3/1 23 वातं पित्त तथा श्लेष्मा शिरा स्नायुश्च चर्म च। 55 जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, 4/273 जठराग्नि रिति प्राज्ञैः प्रोक्ताः सप्तोपधातवः ।। 56 अनगारधर्मामृत, 7/9 - गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), 1/31 57 स्वस्थवृत्त समुच्चयः, स्व. राजेश्वरदत्त शास्त्री, पृ. 1 24 तंदुलवैचारिकप्रकीर्णक, 143 58 वही, पृ. 2 25 वही, 109 59 स्थानांगसूत्र, 10/83. 26 सहजसुखसाधन, ब्र.सीतलप्रसाद, पृ. 43 60 जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश, पृ. 8 27 शरीरसंबंधीज्ञान, केथरिन आर्मस्ट्राँग, पृ. 39 61 वही, पृ. 8 28 अनुप्रायोगिक मानव-शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान (एम.ए. 62 किंची सकाय सत्थं किंची परकाया तदुभयं किंचि। एयं तु पुस्तक), पृ. 4 दव्व सत्थं भावे अ असंजमो सत्थं ।। 29 (क) शरीरसंबंधीज्ञान, केथरिन आर्मस्ट्राँग, पृ. 39-44 - आचारांगनियुक्ति, 96 (ख) अनुप्रायोगिक मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान (एम. 63 आचारांगसूत्र, 1/1/7/4 ए.पुस्तक), पृ. 2 64 उत्तराध्ययनसूत्र, 23/71 301 अध्याय 5 : शरीर-प्रबन्धन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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