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________________ ★ आध्यात्मिक दृष्टि से169 - • जो लोग रात्रिभोजन नहीं करते, उनमें अप्रमत्तता एवं सक्रियता का विकास होता है, साथ ही आत्मा पुष्ट बनती है। ऐसे लोग सायंकालीन प्रतिक्रमण, ध्यान, भक्ति आदि में भी मन लगा सकते हैं। ★ वैज्ञानिक दृष्टि से - • रात्रि में प्राणवायु की मात्रा कम हो जाती है और कार्बन-डाई-ऑक्साइड (CO2) की मात्रा बढ़ जाती है। • सूर्य की किरणों में इन्फ्रारेड (Infrared) तथा अल्ट्रा-वायलेट (Ultra-violet) किरणें होती हैं, जो कत्रिम प्रकाश स्रोतों में नहीं होती। इनमें से इन्फ्रारेड किरणें वातावरण में सूक्ष्मजीवों की उत्पत्ति नहीं होने देती।70 सोने के कम से कम तीन घण्टे पूर्व तक भोजन अवश्य कर लेना चाहिए, जिससे पाचन क्रिया व्यवस्थित हो सके। • सूर्य से न केवल प्रकाश मिलता है, अपितु विटामिन-डी आदि जीवनदायिनी शक्तियाँ भी मिलती हैं। ★ आयुर्वेदानुसार – ‘शरीर में दो मुख्य कमल होते हैं - हृदय-कमल एवं नाभि-कमल। इन दोनों का संचालन सूर्य से जुड़ा है, सूर्यास्त होने पर जैसे कमलदल सिकुड़ जाते हैं, वैसे ही ये दोनों कमल भी शिथिल (संकुचित) हो जाते हैं अर्थात् इनकी गति मन्द पड़ जाती है, अतः रात्रिभोजन करने से अनेक रोगों की उत्पत्ति होती है। 171 यह शोध का विषय है कि चिकित्सा-विज्ञान में नाभि-स्थान के तन्तुओं को 'Solar Plexus' क्यों कहा जाता है? सम्भवतया Solar शब्द नाभि-स्थान के अवयवों की सूर्य के साथ सम्बद्धता अर्थात् क्रियाशीलता का सूचक है।12 इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकलता है कि शरीर के सम्यक् प्रबन्धन के लिए रात्रिभोजन का त्याग करना एक आवश्यक कर्त्तव्य है।113 जैनदृष्टि से रात्रिभोजन किसे कहें?174 क्र. भोजन के विकल्प रात्रिभोजन है' या 'नहीं' 1) दिन में बनाना, रात में खाना 2) रात में बमाना, दिन में खाना 3) रात में बनाना, रात में खाना 4) दिन में बनाना, दिन में खाना अध्याय 5 : शरीर-प्रबन्धन है 275 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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