SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ AR • एक सारीक कदम 6 पूज्यपाद अध्यात्मयोगी गुरूदेव श्रीमहेन्द्रसागरजी म.सा. 'जीवन' यह शब्द अपने आप में बहुत छोटा-सा है, लेकिन इसकी गहराई में जाकर जब इसका निरीक्षण, परीक्षण और समीक्षण करेंगे, तो हमें स्वतः ही इसकी विशालता का अनुभव हुए बिना नहीं रहता। यह अपने अन्तरंग में अनेकों भावों को समेटे हुए है। व्यक्ति जिन-जिन क्षेत्रों में अपना डग भरता है, उन सभी क्षेत्रों में उसे अपने जीवन को सन्तुलित बनाकर रखना होता है, अन्यथा वह उसमें, जाल में मकड़ी की तरह, उलझ जाता है और अपने जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है। अन्ततः वह उदासी, निराशा और कुण्ठा के एक ऐसे भँवर में फँस जाता है, जहाँ से निकलना उसे असम्भवप्रायः महसूस होता है। जीवन के इन सभी पहलुओं को सुव्यवस्थित एवं सुसमन्वित करने के लिए जैन-दर्शन में जहाँ-तहाँ समाधान रूपी मोती बिखरे पड़े हैं। उन्हें एकत्र कर एक सुन्दर एवं सुशोभित माला का रूप मुनिमनीषसागरजी ने अपने इस शोध-ग्रन्थ के माध्यम से दिया है। इस ग्रन्थ को 'समस्याओं के समाधान की कुंजी' (The Key to Life Problems) भी बोलें, तो कोई अतिशयोक्तिभरा शीर्षक नहीं होगा, क्योंकि जीवन के प्रत्येक पहलू में उठती समस्याओं के समाधान का इसमें खूब सुन्दर ढंग से विश्लेषण किया गया है, आवश्यकता है तो उसे जीवन में उतारने की। यह अनमोल कृति हमें समाधान के द्वार तक तो पहुँचा सकती है, पर उसका जीवन में उपयोग कर हम कैसे इस द्वार के अन्दर प्रवेश पाते हैं और अपने जीवन को सुख, शान्ति और आनन्द से सराबोर बना पाते हैं, वह हमारे हाथ में है। यह कृति मुनिश्री के गहन चिन्तन, मनन और मन्थन का ही परिणाम है। विहार, प्रवचन, शिविर आदि कार्यक्रमों के चलते, समय की अत्यन्त कटोकटी के बावजूद भी सतत परिश्रम और लगन के साथ स्व-पर उपकारक ऐसी अपूर्व कृति की भेंट से इन्होंने जैन समाज को ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण मानव-जाति को लाभान्वित किया है। अल्पकाल में ही इन्होंने द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग आदि की जिन गहराइयों को स्पर्श किया है, इसका ज्ञान इस कृति का पठन कर स्वतः लगाया जा सकता है। इन्होंने जो विज्ञान व विश्वास पर धर्म को खड़ा करने का कार्य किया है, वह सचमुच ही अपने भावी भविष्य की आधारशिला को स्थापित هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی م ی هی ه . هی هی هی هی هی هی هی هی هی هی एक सार्थक कदम For Personal & Private Use Only Xxin www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy