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________________ 40) अतीत की घटनाओं को बार-बार याद करना और लोगों को सुनाना । 41) रोज समाचारपत्र अथवा टी.वी. में भविष्यफल आदि देखना । 42) क्रिकेट मैच आदि देखने में घण्टों बिताना । 43) मेहमानों की खूब अच्छी खातिरदारी हो, इस विचार में व्यर्थ समय नष्ट करना । 44) काम के बीच-बीच में चाय, सिगरेट आदि पीना । 45) शाम को बाजार में घूमने-फिरने जाना, विभिन्न प्रकार के चाट आदि खाना इत्यादि । (ख) पारिवारिक एवं सामाजिक कारक 122 1) आगन्तुक (Visitors) - परिवार में कोई ऐसे मेहमान आते हैं, जो बिना किसी पूर्व सूचना के एवं बिना किसी ठोस उद्देश्य के अनिश्चित काल के लिए किसी भी समय आ जाते हैं । प्रायः ये अर्थहीन वार्ता करने में अपना एवं दूसरों का समय नष्ट करते हैं, अतः समझदार समय-प्रबन्धक को चाहिए कि वह इनकी निरर्थक बातों में रुचि न दिखाकर उन्हें शीघ्रता से विदा कर दे । 2) मित्रगण (Friends) कुछ मित्र ऐसे होते हैं, जो निरर्थक बातों एवं अनावश्यक कार्यों में स्वयं का और दूसरों का समय नष्ट करते हैं, अतः समय-प्रबन्धक को चाहिए कि ऐसे मित्रों एवं इनके साथ बातचीत करने में सतर्क एवं सावधान रहे। 3) अनुशासनहीनता (Indiscipline ) परिवार एवं समाज में अक्सर अनुशासनात्मक व्यवहार की कमी होती है, जिससे कोई भी कार्य न निर्धारित समय पर प्रारम्भ हो पाता है और न निर्धारित समय पर समाप्त। इससे समय की अतिरिक्त बर्बादी होती है, अतः हमें चाहिए कि समय का दुरुपयोग रोकने के लिए उपाय खोजें । 1 4) अव्यवस्थाएँ (Disorder) परिवार और समाज में कई प्रकार के रीति-रिवाज चल रहे हैं, जो अन्धविश्वास एवं अन्धरूढ़ियों पर आधारित हैं । इनका कोई वैज्ञानिक या तात्त्विक आधार नहीं है। कहा जा सकता है कि बिना प्रयोजन वाले आयोजनों की बाढ़ सी आ गई है। इन अव्यवस्थाओं में बहुत-सा समय खर्च हो जाता है, अतः इनसे बचने के उपाय खोजने चाहिए । 5 ) निरर्थक गोष्ठियाँ कई बार छोटी-छोटी बातों को लेकर गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं, लेकिन उनमें भी एक- दूसरे का अहं टकराता है । वैचारिक संघर्ष विवाद का रूप ले लेता है। समाधान के अभाव में तनाव और कलह बढ़ते हैं, साथ ही पारिवारिक एवं सामाजिक प्रगति का उद्देश्य भी नष्ट हो जाता है। 34 6) अनावश्यक आलोचनात्मक बैठकें परिवार और समाज में सबसे बड़ी समस्या है एक-दूसरे पर कटाक्ष करना। अधिकांश लोग सृजनात्मक एवं रचनात्मक कार्यों में अपने समय का सदुपयोग करने के बजाय दूसरों की बुराइयाँ करने और उन्हें नीचा दिखाने में ही अपना समय नष्ट करते हैं। हमें चाहिए कि ऐसी बातों से दूर रहें, जिससे समय को बचाया जा सके । जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व Jain Education International - - For Personal & Private Use Only 216 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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