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________________ 16) सब्जीवाले, रिक्षेवाले, सफाई कर्मचारी, राशनवाले आदि से छोटी-छोटी रकम के लिए खूब लम्बे समय तक भाव-ताव (Bargaining) करना। 17) नाश्ते और भोजन के मेनू (Menu) बनाने के विचार-विमर्श में समय नष्ट करना। 18) आहार में प्रतिदिन सामग्रियों की अत्यधिक विविधता की चाह होना। 19) बच्चों और पति को बार-बार उठाने का प्रयास करना , फिर भी उनका न उठना। 20) परिवार में प्रतिदिन क्लेश और कलह करना। 21) किसी तीसरे व्यक्ति की आलोचना, निन्दा अथवा चुगली करना, जिसमें स्वयं और सामने मौजूद व्यक्ति दोनों के समय की बर्बादी हो। 22) कई कार्य एक साथ करना, लेकिन किसी भी कार्य को पूरा नहीं करना। 23) मोबाईल अथवा दूरभाष का दुरुपयोग करना, जैसे – अनावश्यक फोटो खींचना, SMS भेजना, गेम्स खेलना, गाने सुनना, अतिवार्ता करना आदि। 24) कम्प्यूटर का दुरुपयोग करना, जैसे - इंटरनेट पर गेम्स खेलना, चेटिंग करना, म्युजिक सुनना, __रिंग-टोन ढूँढना, स्क्रीन सेवर ढूँढना , अश्लील चित्र देखना आदि। 25) छोटी-छोटी बातों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना। 26) अपने सहवर्तियों, अनुवतियों, अधिकारियों, ग्राहकों अथवा नौकरों के साथ असभ्य , अशिष्ट और अपशब्दयुक्त वाणी का प्रयोग करना, जिससे छोटी-छोटी बातों पर भी लम्बी-लम्बी बहस हो। 27) बात-बात में हास्य करना, जिससे मनोरंजन अधिक और काम कम हो। 28) समाचारपत्र, उपन्यास, पत्रिकाएँ आदि का अनावश्यक प्रयोग करना। 29) मनोरंजन के निमित्त अधिक यात्राएँ करना एवं इन यात्राओं में यूँ ही गपशप आदि में समय बिताना। 30) बार-बार खरीददारी करना एवं उसमें डिजाइन आदि के चुनाव में व्यर्थ समय नष्ट करना। 31) बार-बार घर की सफाई करना। 32) हर कार्य में सजावट (Decoration) के लिए अधिक समय देना। 33) बार-बार होटलों में जाना। 34) वैवाहिक एवं अन्य व्यावहारिक कार्यक्रमों में अनिवार्य रूप से जाना और उनमें पूरे समय अपनी उपस्थिति देना। 35) शाम को देरी से भोजन करना और फिर टहलना। 36) दूरदर्शन का दुरुपयोग करना। 37) सप्त व्यसन की आदत पड़ना, जो इस प्रकार हैं 1) शिकार 2) जुआ 3) चोरी 4) मांसभक्षण 5) मद्यपान 6) वेश्यागमन 7) परस्त्रीगमन 38) शाम को भोजन करके चौराहे अथवा चौपाल पर गपशप करना। ___39) ग्राहकों को रिझाने के लिए उनसे देश और राजनीति की अनावश्यक चर्चा करना। 215 अध्याय 4: समय-प्रबन्धन 33 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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