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________________ 1) स्मृति 2) 3) चिन्ता 4 भय 5) निराशा 6) शोक 7) 8) 9) कल्पना ईर्ष्या आसक्ति द्वंद्व 10) मिथ्यात्व 30 नकारात्मक मनःस्थिति के कतिपय उदाहरण अतीत के अनावश्यक विषयों के स्मरण में डूब जाना।. भविष्य की आधारहीन कल्पना में खो जाना । अनचाही घटना कहीं घटित न हो जाए, ऐसी अनावश्यक चिन्ता करना । भविष्य के सम्भावित नुकसान और असुरक्षा से समस्या से जूझने का उत्साह समाप्त हो जाना। अनचाही घटना के घटित होने पर यह नहीं होनी थी', ऐसे चिन्तन से दुःखी होना । किसी के आगे बढ़ने पर उससे द्वेष करना । डरना । इंद्रियों के विषयों के प्रति मुग्ध हो जाना । आत्मविश्वास की कमी से निर्णय नहीं कर पाना। संसार के यथार्थ स्वरूप से अनभिज्ञ होने से जो सत्य है, उसे असत्य मानना और जो असत्य है, उसे सत्य मानना, ऐसी वैभाविक आत्मदशा का होना । __11) अपेक्षा की उपेक्षा होने पर उत्तेजित होना। 12 ) अधीरता समयोचित फल की प्राप्ति न होने पर बेचैन होना । नकारात्मक मनःस्थिति के उपर्युक्त लक्षणों से बचने के लिए सकारात्मक सोच का अभ्यास करना चाहिए। जैनदर्शन में इस अंतरंग - शुद्धि की प्रक्रिया को 'तप' कहा गया है। सकारात्मक सोच के माध्यम से व्यक्ति के अंतरंग व्यक्तित्व का विकास होता है और वह बड़ी से बड़ी समस्याओं में भी विचलित हुए बिना शान्तिपूर्ण एवं त्वरित समाधान खोज लेता है। (विशेष : देखें अध्याय 7 ) 2) आरामपसन्द या आलसी प्रकृति व्यक्ति का सामान्य स्वभाव होता है कि उसमें गलत प्रवृत्तियों को समय से पूर्व ही करने की रुचि रहती है, जबकि सम्यक् प्रवृत्तियों को उचित समय पर भी करने की मानसिकता नहीं बन पाती। वह अच्छे कार्यों को आज के बजाय कल पर टालने का प्रयास करता है, किन्तु हमें याद रखना चाहिए कि जैनदर्शन के अनुसार, मनुष्य की यह प्रवृत्ति उचित नहीं है। हमें गलत प्रवृत्तियों को तत्काल क्रियान्वित करने से बचने का और सम्यक् प्रवृत्तियों को तत्काल करने का प्रयत्न करना चाहिए । Procrastination is the thief of time (प्रमाद समय का हरण करने वाला तत्त्व है ।) आलसी प्रवृत्ति वाले लोग 'आज और अभी करो' वाले कार्य को 'कल या कभी भी कर लेंगे' के लिए टाल कर भले ही कुछ समय के लिए तनाव मुक्ति के भ्रम में रह लें, परन्तु वास्तव में वे अपना तनाव का स्तर बढ़ाते ही हैं । भगवान् महावीर ने तो यहाँ तक कहा है कि 'वर्त्तमान में जो क्षण उपस्थित है, वही महत्त्वपूर्ण है, अतः उसे सफल बनाना चाहिए ।' ,113 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व Jain Education International For Personal & Private Use Only 212 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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