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________________ 4.6.7 समय की बर्बादी से बचना (Avoid Time Wastage) उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार, असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति करनी चाहिए। 110 आशय यह है कि हमें सदैव यह भान होना चाहिए कि हमें क्या करना है और क्या नहीं करना है। इस सही और गलत का भेद करने में समर्थ बुद्धि ही विवेक कहलाती है। लक्ष्य-प्राप्ति में बाधक तत्त्वों और उनकी आसक्ति का परित्याग करना ‘असंयम से निवृत्ति' है तथा लक्ष्य प्राप्ति में साधक तत्त्वों का संप्रयोग करना 'संयम में प्रवृत्ति' है। इससे समय की बचत होती है और उचित लक्ष्य की प्राप्ति उचित समय पर की जा सकती है। फिर भी, न चाहते हुए व्यक्ति समय नष्ट करने वाले कारकों के भँवर में कुछ इस प्रकार से फँस जाता है कि उसका अमूल्य समय यूँ ही नष्ट हो जाता है। 11 समय नष्ट करने वाले कारक (Time wasters)112 ___ समय नष्ट करने वाले कारकों को हम चार श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं - (क) स्वयं से जुड़े कारक (Time wasters related to self) (ख) पारिवारिक एवं सामाजिक कारक (Time wasters related to family and society) (ग) व्यवसाय सम्बन्धी कारक (Time wasters related to occupation) (घ) अन्य कारक (Other time wasters) (क) स्वयं से जुड़े कारक समय बर्बाद करने वाले कुछ कारक ऐसे हैं, जिनके लिए पूर्णतया व्यक्ति ही जिम्मेदार होता है। जीवन जीते हुए हमारे व्यक्तित्व में कुछ ऐसी विसंगतियाँ घर कर लेती हैं, जिससे हमारे जीवन का अमूल्य समय व्यर्थ चला जाता है, जैसे - 1) नकारात्मक मनःस्थिति - जब मनःस्थिति सकारात्मक होती है, तब व्यक्ति अल्पसमय में ही अपना कार्य सम्पन्न कर लेता है, किन्तु नकारात्मक मनःस्थिति वाला व्यक्ति सामान्य कार्य में भी अनावश्यक समय खर्च कर देता है। मन की अधीरता, अस्थिरता, चंचलता, असन्तोषता, विचलितता, विकलता, व्याकुलता एवं बेचैनी किसी भी कार्य को उचित ढंग से एवं उचित समय पर पूरा नहीं होने देती। 211 अध्याय 4: समय-प्रबन्धन २७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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