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________________ ★ आध्यात्मिक-विकास की व्यवस्था - हमारी योजना में सिर्फ जीवन-यापन की व्यवस्था जुटाने को ही महत्त्व न मिले , बल्कि ऐसी नीति हो, जिसमें जीवन-निर्माण या चरित्र-निर्माण के लिए भी समुचित समय दिया जा सके, क्योंकि उत्तराध्ययनसूत्र में निम्न चार परम दुर्लभ वस्तुएँ बताई गई हैं59 - • मनुष्य जन्म • धर्म-श्रवण • सत्य पर सही निष्ठा • संयम में पुरूषार्थ ★ उत्साहवर्धक लक्ष्य – हमारे लक्ष्य की कुछ ऐसी विशेषताएँ हों, जिससे कार्य के क्रियान्वयन में हमारे उत्साह और रुचि की अभिवृद्धि होती रहे। ये विशेषताएँ हैं - Specificness स्पष्टता Measurability मन्ने की योग्यता Achievability प्राप्ति की योग्यता Time boundedness समयबद्धता इन्हीं को संक्षिप्त रूप में इस प्रकार कह सकते हैं - Our goal should be SMART RO समय-प्रबन्धन के सन्दर्भ में प्लानिंग करते समय निम्न नीतियों का पालन करना चाहिए - ★ समय के अपव्यय को रोकना। ★ कम समय में ज्यादा काम करना। ★ कुछ समय किसी विशेष जीवनोपयोगी कार्य में लगाना। ★ जीवन अल्प है और कार्य अनेक, 2 अतः समय का वहीं निवेश करना, जहाँ अधिकतम लाभ हो, जैसा कि हम व्यापार-जगत् में करते हैं। ★ जीवन के विभिन्न पक्षों को सन्तुलित महत्त्व देना, जैसे - आत्मा, स्वास्थ्य, दायित्व, साधना, सहयोगीगण आदि। ★ योजनाएँ पूर्वानुमान पर आधारित होती हैं, अतः उनमें लचीलापन रखना, क्योंकि यह भी सम्भव है कि जैसा हम सोचते हैं, वैसा न हो। ऐसी स्थिति में हम न निराश हों और न उत्तेजित, बल्कि देश, काल, शक्ति और परिस्थिति के आधार पर आवश्यक समन्वय करते हुए निर्धारित लक्ष्य की ओर शान्तिपूर्वक बढ़ते रहें। कहा भी गया है - ‘देशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत्' । - ★ लक्ष्य और क्षमता का समन्वय होना भी आवश्यक है। जैनआचारमीमांसा में प्रत्येक साधक को 197 अध्याय 4 : समय-प्रबन्धन 15 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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