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________________ 1.8 जीवन-प्रबन्धन के विविध आयाम प्रबन्धन का यह सिद्धान्त है कि जटिल कार्य को आसान करने के लिए उसे छोटे-छोटे कार्यांशों में विभाजित कर देना चाहिए। इसी सिद्धान्त को जीवन-प्रबन्धन में भी लागू करना आवश्यक है। चूंकि जीवन-प्रबन्धन एक बृहत्प्रक्रिया है, जिसके अनेक पक्ष या पहलू हैं। अतः इन पक्षों का पृथक्-पृथक् प्रबन्धन करके उनका एकीकरण करना ही जीवन का समग्र प्रबन्धन है। इन्हें ही जीवन-प्रबन्धन के विविध आयाम कहा जा सकता है। 1.8.1 जीवन-प्रबन्धन के मुख्य विभाग प्रबन्धन के विषय में यह कहा जा चुका है कि साधक, साधन और साध्य को एक सूत्र में पिरोने वाली प्रक्रिया 'प्रबन्धन' है। इस परिभाषा से यह ज्ञात होता है कि प्रबन्धन-प्रक्रिया के तीन मुख्य विभाग होते हैं - साधक, साधन और साध्य । जीवन का समग्र प्रबन्धन करने के लिए हम जीवन के समस्त पहलुओं का समायोजन इन तीन मुख्य विभागों के अन्तर्गत कर सकते हैं। अतः साधक-प्रबन्धन, साधन-प्रबन्धन और साध्य–प्रबन्धन का समन्वित योग ही जीवन-प्रबन्धन है, जो निम्न चार्ट से स्पष्ट है - जीवन-प्रबन्धन साधक-प्रबन्धन साधन-प्रबन्धन साध्य-प्रबन्धन 6) पर्यावरण-प्रबन्धन 7) समाज-प्रबन्धन 1) शिक्षा-प्रबन्धन 2) समय-प्रबन्धन 3) शरीर-प्रबन्धन 4) अभिव्यक्ति (वाणी)-प्रबन्धन 5) तनाव एवं मनोविकार-प्रबन्धन 8) अर्थ-प्रबन्धन 9) भोगोपभोग-प्रबन्धन 10) धार्मिक-व्यवहार-प्रबन्धन 11) आध्यात्मिकविकास-प्रबन्धन (1) साधक-प्रबन्धन - साधक के व्यक्तित्व से सम्बन्धित पहलुओं का प्रबन्धन ‘साधक-प्रबन्धन' कहलाता है। साधक के व्यक्तित्व की तीन मूलभूत योग्यताएँ होती हैं – समझ, समय और सामर्थ्य । इनकी अभिव्यक्ति भी प्रत्येक साधक में भिन्न-भिन्न होती है। समझ का अर्थ 'विवेक-बुद्धि' है, जो जीवन की सकारात्मक गत्यात्मकता (Positive Dynamicity) का मुख्य हेतु है। इस समझ या विवेकशीलता का विकास शिक्षा से होता है। __ समय का अर्थ 'काल' है, जो जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण पक्षों में से एक है। 76 जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व 16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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