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________________ 8 हार्दिक अभिनन्दन , परम पूज्या प्रज्ञा भारती प्रवर्तिनी साध्वी श्रीचन्द्रप्रभाश्रीजी म.सा. आधुनिक युग में व्यक्ति के लिए नैतिकता व अध्यात्म का पथ अपनाना अत्यन्त दुष्कर है। इसके दो कारण हैं – व्यक्ति के लिए न दर्शन एवं आचार शास्त्रों की जटिल बातें समझ पाना आसान है और न ही वर्तमान परिवेश में सन्मार्ग के सम्मुख होने का माहौल भी उसे यथोचित रूप से मिलता है। ऐसे कठिन हालातों में, आपके द्वारा आलेखित शोध-प्रबन्ध 'जैनआचारमीमांसा में जीवन-प्रबन्धन य ही आने वाली पीढ़ी के लिए स्वयं को सही राह पर अग्रसर करने के लिए सुगम व रूचिकर साधन बनेगा। इस शोध-प्रबन्ध की प्रकाशन-बेला में हम आपको साधुवाद देते हैं और यह विश्वास रखते हैं कि यह ग्रन्थ निश्चित ही जनभोग्य होगा। आपका पुनः पुनः हार्दिक अभिनन्दन...... 10 नवम्बर, 2012 बीकानेर प्रवर्तिनी चन्द्रप्रभाश्री ---------- --------- 8 अभिवन्दना..... - परम पूज्या मरूधर ज्योति साध्वी श्रीमणिप्रभाश्रीजी म.सा. आपश्री द्वारा आलेखित शोध-प्रबन्ध का अवलोकन कर अतिप्रसन्नता हुई। इस शोध-प्रबन्ध में आपश्री ने व्यक्तित्व के सर्वाङ्गीण विकास हेतु आध्यात्मिक ग्रन्थों का गहन स्वाध्याय, विज्ञान एवं मनोविज्ञान का तलस्पर्शी अध्ययन तथा साधना स्फूर्त अनुभव-चिन्तन-मनन से जीवन रूपान्तरण के समस्त पहलुओं पर सशक्त लेखन किया है। आपश्री की सरल, स्पष्ट, विस्तृत शैली में लिखित यह कृति 'स्वान्तःसुखाय परहिताय' अवश्य बनेगी। शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक और आत्मिक स्तर पर जीवन कैसे जिया जाए? प्राप्त शक्तियों का सदुपयोग किस प्रकार किया जाए? इस सन्दर्भ में प्रशस्त मार्गदर्शन करेगी। शोध प्रबन्ध प्रकाशन के इस अवसर पर हार्दिक शुभकामना सह पुनः पुनः वन्दन। भानm 30 जुलाई, 2012 भद्रावती साध्वी मणिप्रभाश्री ، محمد محه مه خه م مه سه می م - . م م - ح ی می مه مهمیہ میں کہہ رہے تھے۔ حم می م هم می خم به همه می می می می می می می अभिनन्दन के स्वर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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