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________________ लेकर आध्यात्मिक जीवन-प्रबन्धन जैसे दुष्कर विषय को सरल भाषा में प्रांजल शैली के द्वारा प्रकट करने का कार्य किया है, वह अभिनन्दनीय ही नहीं, अनुकरणीय एवं अभिवन्दनीय भी है। तारक परमात्मा की अनमोल वाणी का गहन चिन्तन-मनन-मन्थन कर आत्मज मुनिवर ने युग को नई दिशा, नई राह प्रदान कर प्रवृत्ति-बहुल युग में निवृत्ति के स्वर को उभारा है। बाहर की ओर दौड़ती दुनिया को अपनी ओर देखने की प्रेरणा दी है। इनकी दक्षता एवं श्रम – दोनों के सहयोग से "जैनआचारमीमांसा में जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व" नामक शोध-ग्रन्थ स्वयं सौष्ठव बना हुआ है। प्रयोग व अभ्यास की धुरी से आपने जो अनभव चेतना का विकास किया है. उस अनभव चेतना का ज्ञान जन-जन में अन्तर के आनन्द को अवतरित करे। आत्मपिपासु, शान्ति-समाधि के पथिक आपके नव्य-भव्य जीवन-उत्कर्ष उद्घोष का सौम्य भाव से चिन्तन, मनन, विश्लेषण कर अपने जीवन की गहराई की जुगाली करें। प्रस्तुत शोध ग्रन्थ में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जिनका श्रम, समर्पण रहा उन समस्त ज्ञात-अज्ञात मानस को साधुवाद । ___ साधना अनुस्यूत जीवन में अपने दायित्व तथा कर्त्तव्य के प्रति जागरूक रहते हुए निरन्तर अमृतोपम चिन्तन से जन-जन को उद्बोधित करने का अनवरत प्रयत्न करते रहें। उसकी फलवत्ता आपके मोक्ष–पाथेय हेतु असन्दिग्ध रहेगी। ༨༨༢.༢.༢༨ ཉ ཏ ཏ ༢ ༢ ༣༢༢༢ ༢ ༣༢༢ ཀཱ ཀ ན ར ༢ ཀ ཀཱ ཏ ཏ ཏ ༨ ༨ ༨ ༨༨༢ ཏ༽ཏ༢༢༢༢༢༢༨༨༢༢༢༢ ༢༢.༢ ཀཏ༢ ཉ ཏ ཧ ༢༨ धर्मनाथ जिनालय 85, अम्मन कोइल, चैन्नई-79 25 अगस्त, 2012 जिन महोदयसागर सूरि चरणरज मुनि पीयूष सागर ----------900 --------- हार्दिक शुभकामना छ परम पूज्या स्वनाम धन्या महत्तरा साध्वी श्रीविनीताश्रीजी म.सा. यह अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है कि परम पूज्य श्रीमहेन्द्रसागरजी म.सा. की पावन कृपा से आपने अपना शोध-अध्ययन सानन्द पूर्ण किया। वास्तव में यह शोध-कार्य केवल विद्वानों व शोधकर्ताओं ही नहीं, अपितु सामान्यजन के लिए भी जीवन-ग्राह्य होगा। हम इसके प्रकाशन की मंगल-बेला में आपको हृदय से बधाई देते हैं। 10 नवम्बर, 2012 विचक्षण विनेया महत्तरा विनीताश्री इन्दौर می می فهمی ممی نے شیعی و IV Jain Education International जीवन-प्रबन्धन के तत्त्व For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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