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________________ साररूप में यह कहा जा सकता है कि जीवन - प्रबन्धक को उसकी प्रबन्धन - यात्रा में साधक और बाधक दोनों ही तत्त्व प्राप्त होते हैं। यदि वह प्रबन्धन की प्रक्रिया में साधक तत्त्वों का चयन एवं प्रयोग करता है, तो उसे परिणामतः सफलता की संप्राप्ति होती है और इससे विपरीत, यदि वह बाधक तत्त्वों का चयन एवं प्रयोग करता है, तो परिणामतः दुःख और विफलता ही हाथ लगती है। अतः साधक को चाहिए कि वह बाधक तत्त्वों का त्याग करता हुआ साधक तत्त्वों को ग्रहण कर अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करे 230 69 दुःख और विफलता Jain Education International कुप्रबंधन बाधक तत्व बहिरंग परिवेश अंतरंग परिवेश बाधक तत्त्वों के प्रयोग का परिणाम सुख और सफलता अध्याय 1: जीवन- प्रबन्धन का पथ For Personal & Private Use Only जीवन प्रबंधन | बहिरंग परिवेश अंतरंग परिवेश साधक तत्त्वों के प्रयोग का परिणाम साधक तत्व 69 www.jainelibrary.org
SR No.003975
Book TitleJain Achar Mimansa me Jivan Prabandhan ke Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManishsagar
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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