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साररूप में यह कहा जा सकता है कि जीवन - प्रबन्धक को उसकी प्रबन्धन - यात्रा में साधक और बाधक दोनों ही तत्त्व प्राप्त होते हैं। यदि वह प्रबन्धन की प्रक्रिया में साधक तत्त्वों का चयन एवं प्रयोग करता है, तो उसे परिणामतः सफलता की संप्राप्ति होती है और इससे विपरीत, यदि वह बाधक तत्त्वों का चयन एवं प्रयोग करता है, तो परिणामतः दुःख और विफलता ही हाथ लगती है। अतः साधक को चाहिए कि वह बाधक तत्त्वों का त्याग करता हुआ साधक तत्त्वों को ग्रहण कर अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करे 230
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दुःख और विफलता
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कुप्रबंधन
बाधक तत्व
बहिरंग परिवेश
अंतरंग परिवेश
बाधक तत्त्वों के प्रयोग का परिणाम
सुख और सफलता
अध्याय 1: जीवन- प्रबन्धन का पथ
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जीवन प्रबंधन
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साधक तत्त्वों के प्रयोग का परिणाम
साधक तत्व
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