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________________ यशोविजयजी के जैन न्याय विषयक संपूर्ण साहित्य उपलब्ध हों तो भी जैन वाङ्मय कृतकृत्य है।"41 यशोविजयजी के उपलब्ध रचनाओं के विश्लेषण से यह बात भी सिद्ध हो जाती है कि वे केवल दार्शनिक और तार्किक ही न होकर आगम के वेत्ता और आगमिक परंपरा के संवाहक भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रत्येक विषय का समर्थन और पुष्टि के लिये आगमों का उल्लेख किया। पू. मुनि जंबूविजयजी ने लिखा है -"यशोविजयजी ने सैंकड़ों वर्षों से नहीं उकरित अनेक जटिल प्रश्नों को उकेर करके समाधान किया है। समस्त आगमिक साहित्य उनके जिव्हान पर खेलता है। उनकी चर्चाएं इतनी तलस्पर्शी और युक्ति, उपपत्ति से परिपूर्ण थी कि अध्ययन करने वालों का वर्षों पुराने भ्रमों और संशयों क्षण में ही दूर हो जाते हैं।"42 यशोविजयजी के अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषद् और ज्ञानसार आदि ग्रन्थ इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि यशोविजयजी बुद्धिवादी और तर्कवादी ही नहीं थे, परन्तु अध्यात्मवादी बनकर अध्यात्म अनुभूतियों को प्रगट करने का सफल प्रयास भी किया है। इन अध्यात्मिक ग्रन्थों में लिखित एकैक शब्द स्वानुभुति के अग्नि में तपकर, स्वानुभूति के मार्ग से गुजरकर प्राप्त सत्यों को प्रकट करते हैं जो साधना मार्ग के पथिक के लिए पथप्रदर्शक बनते हैं। तदुपरान्त बाल जीवों को तत्त्व का बोध सरलता से हो सके इस भावना से लोकभाषा गुजराती में भी रास-चउपाई-स्तवन-पद-सज्झाय आदि काव्य साहित्य की रचना करके महत्तम उपकार किया है। "जग जीवन जग वाल हो', “अब मोहे ऐसी आय बनी," आदि भक्तों के जिह्वा पर नृत्य करने वाले ऐसे स्तवनों ने यशोविजयजी को अमर बना दिया है। इस प्रकार प्रकाण्ड विद्वान बनकर भी यशोविजयजी प्रभुभक्तों के समक्ष सहृदय भक्त कवि के रूप में भी आए हैं। " पंडित सुखलालजी, 'जैन न्यायनो कृमिक विकास', (उपाध्याय यशोविजयजी स्वाध्याय ग्रंथ से उद्धृत, पृ. 158) 4. जंबूविजयजी, 'श्रुतांजली' ( उपाध्याय यशोविजयजी स्वाध्याय ग्रंथ से उधृत, पृ. 250) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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