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13. स्थापना कल्प की सज्झाय 15. ज्ञान-क्रिया की सज्झाय 17. सुगुरू की सज्झाय 19. हरियाली की सज्झाय
14. समकित के 67 बोल की सज्झाय 16. पांच कुगुरू की सज्झाय 18. संयमश्रेणी की सज्झाय 20. हितशिक्षा की सज्झाय
गुजराती भाषा में गद्य और पद्य में लिखित अन्य कृतियाँ - 1. समुद्र-वाह संवाद :
यह संवाद यशोविजयजी की दीर्घ रसप्रद रूपकात्मक कृति है। मूल संवाद तो सागर और वाहन के मध्य है। परन्तु शिक्षा मानव को दी गई है। काव्यकुशलता, तर्कशीलता और वाक्पटुता के कारण वादी-प्रतिवादी के बीच जिन दलीलों की कल्पना कवि ने की है, वे बहुत ही सुन्दर और सचोट हैं। इस में 17 खण्ड और कुल 700 काव्य पंक्तियाँ हैं। यशोविजयजी ने सं. 1717 में घोघा बंदर में इस संवाद की रचना की थी।
2. समताशतक :
कषायों और विषय वासनाओं को जीत करके समता की साधना किस प्रकार की जा सकती है, इसका वर्णन 105 दोहों में किया गया है। 3. समाधिशतक :
इस कृति में 104 दोहे हैं। संसार की माया जीवात्माओं कैसे नचाती है, आत्मज्ञानी उस माया से कैसे मुक्त रहता है, आत्मज्ञानी की उदासीनता, आत्मज्ञानी की अन्तरदृष्टि, समाधि आदि साधना परक विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
इस प्रकार यशोविजयजी ने 1444 ग्रन्थप्रणेता हरिभद्रसूरि आदि पूर्वाचार्यों द्वारा रचित संस्कृत और प्राकृत ग्रन्थों को लोकभाषा गुजराती में काव्य का रूप देकर न केवल उन ग्रन्थों को विद्वदभोग्य से जनयोग्य बनाया, अपितु बाल जीवों पर महान उपकार भी किया है। 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में उनकी मातृभाषा गुजराती के प्रति
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