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________________ 10. सज्झाय : यशोविजयजी ने सामान्य लोगों के लिए सारगर्भित, तत्त्वज्ञानयुक्त, गंभीर चिन्तनशील सज्झायों की सुन्दर रचना की है। इस विषय में यह दंतकथा प्रचलित है कियशोविजयजी अभ्यास पूर्ण होने के पश्चात् अपने गुरू नयविजयजी के साथ काशी से विहार करके एक गांव में आए। वहाँ संध्याकालीन प्रतिक्रमण के समय में गांव के किसी श्रावक ने यशोविजयजी से सज्झाय बोलने के लिए कहा। यशोविजयजी ने कहा कि - अभी उन्हें कोई सज्झाय याद नहीं है। यह सुनकर उत्तेजित हुए उस श्रावक ने यशोविजयजी को उपालम्ब देते हुए कहा कि काशी में तीन-तीन वर्ष रहकर क्या घास काटा ? उस समय तो यशोविजयजी मौन रहे परन्तु बाद में उन्होंने विचार किया कि सामान्य लोग संस्कृत और प्राकृत भाषा में रचित ग्रन्थों को समझ नहीं सकते हैं। जैन तत्त्वज्ञान को लोकभाषा गुजराती में सजाकर परोसा जाय जो साधारण लोग लाभान्वित हो सकते हैं और उन्हें बोध प्राप्त हो सकता है। तुरन्त समकित के 67 बोलों की सज्झाय रचकर, उसे कंठस्थ करके दूसरे दिन प्रतिक्रमण में बोलने लगे। सज्झाय बहुत लम्बी होने से श्रावकों ने अधीर होकर पूछा - सज्झाय और कितनी शेष है ? तब यशोविजयजी ने कहा कि तीन वर्ष तक काशी में रहकर जो घास काटा था, उसके पूले बांध रहा हूँ। इतने पूले बांधने में समय तो लगेगा ही। श्रावक बात को समझ गये और यशोविजयजी से क्षमा याचना की। गुर्जर साहित्य संग्रह के अनुसार निम्नलिखित सज्झायों की रचना यशोविजयजी ने की है - 1. अठार पापस्थानक की सज्झाय 3. ग्यारह उपांग की सज्झाय 5. आत्मप्रबोध की सज्झाय 7. चडता पडता की सज्झाय 9. प्रतिक्रमणगर्भहेतु की सज्झाय 11. प्रतिमा स्थापना की सज्झाय 2. ग्यारह अंग की सज्झाय 4. आठ दृष्टि की सज्झाय 6. उपशम श्रेणी की सज्झाय 8. चार प्रकार के आहार की सज्झाय 10. पांच महाव्रत की सज्झाय 12. यतिधर्म बत्रीशी की सज्झाय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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