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किया है। इस स्तवन में साधु जीवन और श्रावक जीवन के उपयोगी भावों को भी समझाया गया है।
7. मौनएकादशी का स्तवन :
यह मृगसर सुदी एकादशी के दिन हुए भरत, ऐरावत और महाविदेह क्षेत्र के परमात्माओं के 150 कल्याणकों का स्तवन है, जिसके 12 ढाल और 63 गाथाएँ है। 8. तीन चौबीसी :
यशोविजयजी ने जैनधर्म के चौबीस तीर्थंकरों की स्तुतिरूप स्तवनों की रचना की है।
प्रथम चौबीसी में 24 तीर्थंकरों के माता, पिता, नगर, लांछन, आयुष्य का वर्णन है। द्वितीय चौबीसी में और तृतीय चौबीसी में तीर्थंकरों के गुणों को उपमा आदि अलंकारों से वर्णित किया है और उनसे कृपादृष्टि रखने के लिए विनती की है। इन भक्तिसभर स्तवनों में तीर्थंकरों की महिमा और स्तुति ही नहीं है, परन्तु उल्लास, मर्म, नम्रता, भक्ति की मस्ती, धन्यता और कल्पनाशीलता भी है।
9. विहरमान जिन वीशी :
इसमें महाविदेह क्षेत्र में विचरण करने वाले सीमंधर, युगमंधर आदि तीर्थंकरों (विहरमानों) के प्रति भक्तिभावों का आलेखन किया गया है। अल्प से अल्प पांच कड़ियां और अधिकतम सात कड़ियों वाले इन लघु स्तवनों के प्रारम्भ या अन्त में विहरमानों का परिचय देते हुए जन्मस्थान, नगर, माता-पिता लांछन आदि की चर्चा की गई है। इन स्तवनों में यशोविजयजी ने उत्कृष्ट भक्ति के भावों को प्रगट किया है। यथा -
तुज शुं मुज मन नेहलो रे, चंदन गंध समान ___ मेल हुआ ये मूलगो रे सहज स्वभाव निदान रे (स्तवन-2)
इनके अतिरिक्त उन्होंने आवश्यक स्तवन, कुमतिखंडन स्तवन, श्री शान्तिनाथ जिन स्तवन, पार्श्वनाथ के दो स्तवन, महावीर स्वामी का स्तवन की भी रचना की है।
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