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________________ लिखकर उसे पूर्ण किया। यह रास मध्यकालीन जैन साहित्य में समर्थ दो कवियों द्वारा रचित एकमात्र कृति है। 4. सवासौ गाथा का स्तवन : यशोविजयजी ने सवासौ गाथाओं में सीमंधर स्वामी का स्तवन रचा है, जिसमें सीमंधर स्वामी से विनंती करके कुगुरू के आचरणों का तिरस्कार किया है। आत्मा के शुद्धस्वरूप, सत्यज्ञान का महत्त्व, निश्चय और व्यवहार की आवश्यकता आदि विषयों पर प्रकाश डाला है। द्रव्य और भाव स्तवना और जिनपूजा के महत्त्व को समझाकर स्तवन को पूर्ण किया है। 5. डेढ़सौ गाथा का स्तवन : वीरस्तुतिरूप हुंडीस्तवन में जिनप्रतिमापूजन का निषेध करने वालों पर प्रबल प्रहार करके जिनप्रतिमा की पूजा को शास्त्र सम्मत बताने के लिए अनेक प्राचीन समर्थ दृष्टान्त दिये हैं। अहमदाबाद (इंगलपुर) चातुर्मास में दोशी मूला का पुत्र दोशीमेथा को उपदेश देने के लिए (स्थानकवासी से मूर्तिपूजक बनाने के लिए) वि.सं. 1733 में इस स्तवन की रचना की। 6. साढ़ेतीनसौ गाथा का स्तवन : यशोविजयजी ने इस स्तवन की 350 गाथाओं में सीमंधर स्वामी से शुद्धमार्ग बताने के लिए विनती की है। क्योंकि इस कलियुग में लोग अंधश्रद्धा के जाल में फंसकर सूत्र से विरूद्ध आचरण कर रहे हैं और मात्र कष्ट सहन करने वालों को साधु मान रहे हैं। इस प्रकार कुगुरू और उनका अनुसरण करने वालों पर प्रहार 37 संवत सत्तर अडतीस वरसे, रही रांदेर चौमासेजी संघतणा आग्रहथी भाइयो, रास अधिक उल्लासेजी (9) सार्धसप्तशत गाथा विरची, ते पहोंच्या सुरलोकजी तेहना गुण गावे छे गोरी, मिली-मिली थोके-थोकेजी (10) तास विश्वास भाजन तस पूरण, प्रेम पवित्र कहायाजी श्री नयविजय विबुध पथसेवक, सुजस विनय उवज्झायाजी (11) भाग थाकतो पूरण कीधो, तास वचन संकेतजी वली सम्यग दृष्टि जो नर, तास तणे हित हितेजी (12) Jain Éducation International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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