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प्रतिष्ठा अधिकार में परमात्मा की पूजाविधि, पंचोपचार, अष्टोपचार आदि का विवेचन किया गया है ।
सदनुष्ठान अधिकार में प्रीति, भक्ति, वचन और असंग इन चार अनुष्ठानों की व्याख्या की गई है।
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ग्यारवें अधिकार में श्रुताज्ञान का लिंग, शुश्रुषा, चिन्ता, भावना, ज्ञान का स्वरूप आदि बताया गया है ।
बारहवें अधिकार में दीक्षा अधिकारी, नामन्यास आदि विषयों को समझाया गया
है।
तेरहवें अधिकार में गुरूविनय आदि साध क्रियाओं की प्ररूपणा की गई है। चौदहवें अधिकार में सालम्बन और निरालंबन ध्यान योगी का महत्त्वपूर्ण पक्ष प्रस्तुत किया गया है I
पन्द्रहवें अधिकार में ध्येय का यथार्थ स्वरूप चित्रित किया गया है 1
सोलवें अधिकार में अद्वैतवाद की समीक्षा की गई है।
गुजराती भाषा की रचनाएँ -
1. जंबूस्वामी का रास :
'जंबूस्वामीकारास' यशोविजयजी की गुजराती भाषा में रचित महत्त्वपूर्ण कृति उपाध्यायजी ने इस रास की रचना खंभात नगर में वि.सं. 1739 में की। इसमें पांच अधिकार और 37 ढाल हैं। संपूर्ण जंबूस्वामी कथा को विविध ढाल, देशी, दुहा और चौपाइयों मे सुन्दर रूप से ढाली है। इस प्रकार कथा का निर्माण और अभिव्यक्ति, तर्कपूर्ण दलीलों, दृष्टान्तकथाओं का दृष्टिपूत विनियोग, कथनकला, पात्रों का अलंकारयुक्त सटीक मार्मिक निरूपण आदि जंबूस्वामी रास को रासकृतियों में महत्त्वपूर्ण रास के रूप में प्रतिष्ठित कर देते हैं।
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