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________________ 8. काव्यप्रकाशटीका : मम्मट द्वारा रचित 'काव्यप्रकाश' पर उपाध्यायजी ने टीका लिखी जो केवल उल्लास 2 और 3 पर ही उपलब्ध है। 9. न्यायसिद्धान्त मंजरी : प्रस्तुत टीका श्री मल्लिषेणसूरिकृत स्याद्वादमंजरी ग्रन्थ पर रची गई है। 10. योगविंशिकाप्रकरण : श्री हरिभद्रसूरि ने योगविंशिका नामक योग विषयक सुन्दर कृति की रचना की। इस ग्रन्थ में हरिभद्रसूरि ने मात्र 20 श्लोकों में योग के भेद, प्रभेद, अधिकारी, क्रिया की आवश्यकता आदि विभिन्न विषयों का बिंदु में सिंधु के समान प्रतिपादन किया है। यशोविजयजी ने इस लघुग्रन्थ पर स्वयं वृत्ति लिखकर योग-विषयक तथ्यों को उद्घाटित किया है। 11. स्याद्वादकल्पलता : मूलग्रन्थ 'शास्त्रवार्तासमुच्चय' के प्रणेता याकिनीमहत्तरासूनु हरिभद्रसूरि हैं। शंकरभाष्य पर वाचस्पति की टीका के समान यशोविजयजी ने इस दार्शनिक ग्रन्थ पर प्रौढ़ टीका लिखी है, जिसका नाम स्याद्वादकल्पलता है। 13000 श्लोक परिमाण इस टीका ग्रन्थ में उपाध्यायजी ने मूल ग्रन्थ को 11 विभागों में विभाजित करके प्रत्येक विभाग में अलग-अलग दर्शनों को पूर्वपक्ष के रूप में प्रस्तुत करके अकाट्य युक्तियों और तर्कों से उनके उत्तरपक्ष को रखा है। प्रथम स्तवक में भूतचतुष्यात्मवादी (चार्वाक) का खण्डन; दूसरे स्तवक में काल, स्वभाव नियति और कर्म, इन कारण चतुष्टयों के एकान्त-कारणता का खण्डन; तीसरे स्तवक में न्याय–वैशेषिक के ईश्वरकर्तृत्व और सांख्य के प्रकृति-पुरूषवाद का खण्डन; चतुर्थ स्तवक में बौद्धों के क्षणिकवाद का खण्डन; पांचवें स्तवक में योगाचार के क्षणिक विज्ञानवाद का खण्डन; छठे में क्षणिकत्व के हेतुओं का खण्डन; सातवें में जैनदर्शन के स्याद्वाद का निरूपण; आठवें में अद्वैतवेदान्त के अद्वैतवाद का खण्डन; Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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