________________
अनुप्रास, उत्प्रेक्षा, उदात्ता, उपमा, एकावली, रूपक, यमक, श्लेष, दृष्टान्त, निदर्शना, प्रदीप, परिणाम आदि अनेक अलंकारों का सुन्दर और सटीक प्रयोग किया गया है। 17. तिङन्वयोक्ति :
इस ग्रन्थ में तिड.न्तपदों के शब्दबोध का स्पष्टीकरण है।
18. सप्तभंगीनयप्रदीप :
इसमें सप्तभंगी और नयों का प्रतिपादन है।
19. निशाभुक्तिप्रकरण :
इस ग्रन्थ में रात्रिभोजन को अधर्म बताया गया है। 20. परमज्योति पंचविंशिका :
__ इसमें परमात्मा की स्तुति की गई है। 21. परमात्म पंचविंशिका :
इसमें भी परमात्मा की स्तुति की गई है।
22. प्रतिमास्थापनान्याय :
इस ग्रन्थ में प्रतिमा पूज्यत्व के औचित्य का प्रतिपादन है।
23. प्रमेयमाला :
इस ग्रन्थ में विविध वादों का संग्रह किया गया है। 24. मार्गपरिशुद्धि :
इस ग्रन्थ में हरिभद्रसूरि के पंचवस्तु शास्त्र के आधार पर मोक्षमार्ग की विशुद्धता का सुन्दर निरूपण है।
25. यतिदिनचर्या :
इस ग्रन्थ में जैन मुनियों के दैनिक कृत्यों का निरूपण है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org