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8. ज्ञानबिन्दु :
इस गन्थ की श्लोक संख्या 1250 है। इसमें ज्ञान का सामान्य लक्षण, ज्ञान की पूर्ण और अपूर्ण अबस्थाओं, ज्ञानावरणीय कर्म का स्वरूप, आवृतत्व, अनावृतत्व के विरोध का परिहार, परन्तु अद्वैत वेदान्त में आवृतत्व-अनावृतत्व की अनुत्पत्ति, अपूर्ण ज्ञानों का तारतम्य एवं उनके क्षयोपशम की प्रक्रिया आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है।
10. न्यायखण्डनखण्ड खाद्य :
यह नव्यन्याय शैली में प्रणीत विशिष्ट ग्रन्थ है। 5500 श्लोक परिणाम यह ग्रन्थ बहुत जटिल और अर्थगांभीर्य से युक्त है। इसमें उपाध्यायजी के प्रखर पांडित्य का दिग्दर्शन होता है। इस ग्रन्थ पर नेमिसूरिजी तथा विजयदर्शनसूरिजी ने टीका लिखी है।
11. न्यायालोक :
'न्याय' शब्द का अर्थ है, प्रमाणों के द्वारा प्रमेय का परीक्षण करना और 'आलोक' शब्द का अर्थ है प्रकाश। इस प्रकार न्यायालोक का अर्थ प्रमेयों को प्रकाशित करने वाला ग्रन्थ। विवरणात्मक या प्रकरणात्मक शैली में रचित इस ग्रन्थ में तीन प्रकाश हैं। प्रथम प्रकाश में मुक्तिवाद, आत्मवाद, ज्ञानवाद की चर्चा हैं द्वितीय प्रकाश में बौद्ध (योगाचार) सम्मत बाह्यार्थ के अभाव के खण्डन के साथ-साथ समवाय सम्बन्ध, चक्षु के प्राप्यकारित्व, भेदाभेद और अभाववाद की समीक्षा की गई है। तृतीय प्रकाश में षड्द्रव्यों का विस्तृत विवेचन है। इस ग्रन्थ में मुख्यतया गौतमी न्यायशास्त्र तथा बौद्ध न्यायशास्त्र के सर्वथा एकान्त सिद्धान्तों की आलोचना और समीक्षा भी की गई है। कुल श्लोकों की संख्या 1200 है।
12. वादमाला :
वादमाला ग्रन्थ तीन भागों में विभक्त है -
प्रथमवादमाला में स्वत्ववाद, सन्निकर्षवाद, विषयतावाद आदि का प्रतिपादन है।
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