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इस प्रकार उपाध्यायजी ने अध्यात्मप्रेमियों के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ में बहुत सुन्दर सामग्रियों को परोसा है।
4. देवधर्म परीक्षा :
यह ग्रन्थ 425 श्लोकों में रचा गया है। भिन्न-भिन्न 17 मुद्राओं द्वारा देवों को धर्मी, समकितधारी आदि बताकर देव-देवी द्वारा की जाने वाली प्रभुप्रतिमा की पूजा का विशेष प्रतिपादन करके प्रभु-पूजा को शास्त्र सम्मत ठहराया है। इस प्रकार इसमें प्रतिमा पूजा का खण्डन करने वाली स्थानकवासी मान्यता की समीक्षा की गई है। 5. जैनतर्कभाषा :
यशोविजयजी ने इस ग्रन्थ की रचना नव्यन्याय शैली में की है। संस्कृत भाषा में रचित इस ग्रन्थ में कुल 800 श्लोक हैं। ग्रन्थ को परिमाण, नय, और निक्षेप इन तीन परिच्छेदों में विभाजित करके प्रमाण, नय और निक्षेप का युक्तिसंगत निरूपण किया गया है।
6. यतिलक्षणसमुच्च्य :
यह ग्रन्थ प्राकृतभाषा की पद्यरचना है, जिसमें कुल 263 गंभीर हैं। इस ग्रन्थ में साधु महात्माओं के सात लक्षणों का सविस्तार विवेचन किया गया है।
7. नयरहस्य :
इस ग्रन्थ में यशोविजयजी ने नय के नैगमादि सप्त भेदों का निरूपण, नयों का उतरोत्तर सूक्ष्मत्व, विभिन्न नयों के लक्षण एवं स्वरूप आदि का दार्शनिक शैली में विशद विवेचन किया है और साथ में कौन-कौन से नय के एकान्तवाद से कौन-कौन से दर्शन का प्रादुर्भाव हुआ इत्यादि का भी वर्णन किया है। 8. नयप्रदीप :
यह ग्रन्थ 800 श्लोक परिमाण संस्कृत-गद्यात्मक रचना है। ग्रन्थ को सप्तभंगी समर्थन और नयसमर्थन ऐसे दो सर्गों में विभक्त किया गया है।
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