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ऐसा उपनाम भी दिया है। इस ग्रन्थ पर पूज्य देवचंद्रजी और पूज्य गंभीरविजयजी ने संस्कृत टीका लिखी है।
2. अध्यात्मसार :
अध्यात्मसार ग्रन्थ यशोविजयजी का अनुष्टुप छंदों मे बद्ध 949 श्लोक परिमाण महत्त्वपूर्ण अध्यात्मिक कृति है। संस्कृत भाषा में रचित इस ग्रन्थ में 7 प्रबन्ध और अध्यात्म प्रशंसा, अध्यात्मस्वरुप, दंभत्याग, भवस्वरूप, वैराग्यसंभव, वैराग्यभेद, वैराग्य विषय, ममतात्याग, समता, सदानुष्ठान, मनःशुद्धि, समयक्त्व, मिथ्यात्वत्याग, कदाग्रहत्याग, योग, ध्यान, ध्यानस्तुति, आत्मनिश्चय, जैनमतस्तुति, अनुभव और सज्जतस्तुति इत्यादि 21 अधिकार हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ योग और ध्यान साधना की दृष्टि से भी जैन वांग्मय का अमूल्य ग्रन्थ है।
3. अध्यात्मोपनिषद् :
अध्यात्मोपनिषद् जैन साहित्य का अमूल्य ग्रन्थ रत्न है। संस्कृत भाषा में रचित इस ग्रन्थ में 231 अनुष्टुप छंद के श्लोक हैं। ग्रन्थ प्रणेता ने इस ग्रन्थ को मुख्य रूप से चार भागों में विभक्त किया है। 1. शास्त्रयोगशुद्धि अधिकार – इस अधिकार में निश्चय और व्यवहार दृष्टि से
अध्यात्म की विभिन्न व्याख्याएं की गई हैं। 2. ज्ञानयोगशुद्धि अधिकार - इस में आत्मतत्त्व की विशेषोपलब्धि के लिए
ज्ञान योग पर विशेष प्रकाश डाला गया है। 3. क्रियायोगशुद्धि अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में क्रिया पर बल देते हुए
उन्होंने स्पष्ट कहा है कि जो ज्ञान का अभिमान करके क्रिया को छोड़ देते
हैं, वे ज्ञान क्रिया उभय से भ्रष्ट नास्तिक हैं। 4. सम्यग्योगशुद्धि – इस विभाग में समतारस में झिलने वाले साधक की
उच्च दशा का हृदयंगम वर्णन किया है।
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