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________________ 8. ऐन्द्रस्तुतिचतुर्विंशतिका : यह ग्रन्थ न्यायशास्त्र निष्णात उपाध्याय यशोविजयजी द्वारा प्रणीत एक रसप्रद स्वोपज्ञ वृत्ति सहित भक्ति काव्यग्रन्थ है । प्रस्तुत काव्य में अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थपति ऋषभदेव प्रभु से लेकर चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी पर्यन्त 24 तीर्थंकर देवों की सद्गुणसंकीर्तन, वंदना, प्रशंसा और संस्तुति की गई है। प्रथम श्लोक में अधिकृत जिन की स्तुति, दूसरे श्लोक में सर्वजिन की स्तुति, तीसरे श्लोक में श्रुतज्ञान की स्तुति, चतुर्थ श्लोक में अधिकृत तीर्थंकर के अधिष्ठायक शासन देव - देवी की स्तुति की गई है। 55 इस 'स्तुतिचतुर्विंशतिका' का प्रारम्भ 'ऐन्द्रवात नतः इस पद से होने से इस ग्रन्थ का नाम 'ऐन्द्रस्तुति ऐसा प्रचलित हो गया । यशोविजयजी ने श्री शोभनमुनि द्वारा रचित 'स्तुतिचतुर्विंशतिका' के अनुकरणरूप इन स्तुतियों की रचना की है। एक महाकवि की रचना में जिन-जिन साहित्य गुणों की अपेक्षा की जाती है, वे सभी गुण इस स्तुतिचतुर्विंशतिका में देखे जा सकते हैं। 96 श्लोक में रचित इस कृति में यमक—– अनुप्रास आदि विविध अलंकारों का प्रयोग इतने सुन्दर रूप से किया गया है कि कोई भी सहृदय व्यक्ति आकर्षित हो जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार के 7 छन्दों का उपयोग किया गया है। 9. कूपदृष्टान्त विशदीकरण : इस ग्रन्थ में कूप दृष्टान्त के माध्यम से गृहस्थों के लिए विहित द्रव्यपूजा की निर्दोषिता पर प्रकार डाला गया है। 10. ज्ञानार्णव : ज्ञानार्णव उपाध्याय यशोविजयजी द्वारा नव्यन्याय शैली में रची गई महत्त्वपूर्ण कृति है । यह शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव से भिन्न है। इसमें जैन मतानुसार मतिज्ञान, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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