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कथा का द्रोपदीचरित्र का पाठ, जीवाभिगम सूत्रगत शाश्वत प्रतिमा का पाठ, आवश्यकनियुक्तिगत प्रतिमा और द्रव्यलिंगी का पाठ, सूत्रकृतांग सूत्रगत पुरूषविजय विषयक पाठ तथा आगम पाठों के अतिरिक्त लगभग सौ ग्रन्थों से चार सौ से भी अधिक साक्षीपाठ दिए गए हैं।
6. आराधक विराधक चतुर्भगी :
प्रस्तुत ग्रन्थ में यशोविजयजी ने देशतः आराधक और देशतः विराधक तथा सर्वतः आराधक और सर्वतः विराधक इन चार विषयों पर प्रकाश डाला है।
7. उपदेश रहस्य :
___1444 ग्रन्थ प्रणेता श्री हरिभद्रसूरिकृत 'उपदेशपद' नामक ग्रन्थ के आधार पर उपाध्यायजी ने प्राकृत भाषा में 'उपदेशरहस्य' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया। परन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ उपदेशपद का अनुवाद न होकर उपाध्यायजी का स्वतंत्र सर्जन हैं। इस ग्रन्थ के विषय में प.पू.पं.श्री प्रद्युम्नविजयजी ने लिखा है -"पूज्यपाद उपाध्यायजी ने 'उपदेशपद' के विषयों को अधिक सुवाच्य शैली में इस ग्रन्थ को प्रस्तुत किया है। 'उपदेशरहस्य' उपदेशपद के सारोद्धार के रूप में प्रतीत होने पर भी इस ग्रन्थ निरूपण की दृष्टि से मौलिक और स्वतंत्र है। इस ग्रन्थ की यह विशेषता है कि मात्र 203 गाथाओं में द्रव्यचरित्र, द्रव्याज्ञापालन, देशविरति, सर्वविरति तथा इनके प्रभेदों द्रव्यस्तव, भावस्तव की आवश्यकता, विनय के बावन भेदों, वैयावच्च आदि 450 से भी अधिक विषयों की मीमांसा की गई है। सामान्यतया इस बात को समझ पाना कठिन हो जाता है कि 406 पंक्तियों में 450 से भी अधिक विषयों का प्रतिपादन कैसे संभव हो सकता है। यह उपाध्यायजी की लाघव शैली का विशिष्ट गुण है। यशोविजयजी ने प्रत्येक पंक्ति को उचित शब्द चयन द्वारा अर्थसभर बनाया है और उसका अर्थविस्तार टीका में किया है।
36 उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रन्थ, संपादको – प्रद्युम्नविजयगणि, जयंत कोठारी, कांतिभाई बी. शाह, पृ. 121
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