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________________ यशोविजयजी का अन्य समकालीन मुनियों के साथ सम्बन्ध - 1. उपाध्याय विनयविजयजी : विनयविजयजी, हीरविजयसूरि के प्रशिष्य एवं कीर्तिविजयजी के शिष्यरत्न थे। विनयविजयजी तर्क और काव्य के सुदृढ़ अभ्यासी थे। संस्कृत तथा गुजराती भाषा में शान्तसुधारस, श्रीपालरास आदि अनेक कृतियों की रचना की है। 'विनयविलास' कबीर आदि के परंपरा के हिन्दी पदों का संचय है। सं. 1738 में आपका देवलोकगमन हो जाने से 'श्रीपालरास' अधूरा ही रह गया था। यशोविजयजी ने इस श्रीपालरास को पूर्ण किया और इस रास के कलश में अपने साथ विनयविजयजी के स्नेह सम्बन्ध का भावपूर्ण उल्लेख किया है। विनयविजयजी की सहायता से ही 'धर्मपरीक्षाप्रकरण' में निखार और उत्कृष्टता आई, ऐसा उल्लेख भी किया है। 2. जयसोमगणि : यशोविजयजी ने जब बीसस्थानक पदों की ओली की थी, उस समय जयसोमगणि ने आपकी तन और मन से सेवाशुश्रुषा की थी।24 जयसोमगणि ने 'नयचक्रवृत्ति के लेखन में भी यशोविजयजी की सहायता की थी। आपने कर्मग्रन्थों पर बालावबोधों की और नेमिनाथ लेख आदि गुजराती कृतियों की भी रचना की। इनकी कृतियों में सं. 1703 से 1723 तक का रचनावर्ष मिलता है। 3. मानविजयगणि : मानविजयजी, शान्तिविजयजी के मेधावी शिष्यरत्न थे, जिन्होंने संस्कृत भाषा में 'धर्मसंग्रह' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया। इन्होंने गुजराती भाषा में भी कुछ बालावबोधों, स्तवनों आदि की रचना की। उपाध्यायजी ने आपके 'धर्मसंग्रह' ग्रन्थ का सूक्ष्मदृष्टि से संशोधन करके ग्रन्थ की प्रामाणिकता में वृद्धि की, ऐसा स्वयं 24 पंडितजी थानकतप विधिस्य आदरेजी, च्छदेन भवसंताप भीना मारग शुद्ध संवेगनेजी, चाँढे संयम चाषे जय सोमारिक पंडित मंडलीजी. सेवे चरण अदोष .......... सुजसवेलीभास, गा. 3/10, 11 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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