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आगरा में विशिष्ट अध्ययन -
तीन वर्ष काशी में रहकर तार्किक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करके यशोविजयजी आगरा पधारे। वहां न्यायाचार्य के पास चार वर्ष तक अभ्यास करके कठिन तर्क सिद्धान्त और प्रमाण आदि विषय में निपुणता प्राप्त की। इन्होंने आगरा तथा अन्य स्थानों पर आयोजित वादसभाओं में शास्त्रार्थ करके विजयश्री का वरण किया। यशोविजयजी के आगरा गमन की बात 'सुजसवेलीभास' के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं पर भी देखने में नहीं आती है। परन्तु काशीवास का उल्लेख तो स्वयं यशोविजयजी ने बहुत बार किया है।
अहमदाबाद में अठारह अवधानों का प्रयोग -
नयविजयजी यशोविजयजी आदि शिष्यमंडल के साथ आगरा से विहार करके अहमदाबाद पधारे। उस समय अहमदाबाद में मोहब्बतखान का शासन चल रहा था। यशोविजयजी की कीर्ति मोहब्बतखान के कानों तक पहुंची। उनकी प्रखर विद्वता के विषय में सुनकर मोहब्बतखान के मन में यशोविजयजी से मिलने की तीव्र उत्कंठा जागृत हुई। उसने जैनसंघ द्वारा यशोविजयजी को राजसभा में पधारने के लिए आमंत्रण भेजा। सूबे की प्रार्थना स्वीकार कर यशोविजयजी गुरूमहाराज, अन्य साधुओं और अग्रगण्य श्रावकों के साथ राजसभा में पधारे और वहाँ विशाल सभा के समक्ष अठारह अवधान का प्रयोग करके दिखाया। इसमें अलग-अलग अठारह व्यक्तियों द्वारा कही बात को सुनकर बाद में उसी क्रमानुसार कहना, पादपूर्ति करना, शब्दों का जमाकर वाक्य बनाना तथा तुरंत संस्कृत में श्लोक रचना करनी होती है। यशोविजयजी की आश्चर्यकारी स्मरणशक्ति और कवित्वशक्ति से खूब आकर्षित होकर मोहब्बतखान ने यशोविजयजी का भव्य सम्मान किया, जिससे जिनशासन की बहुत प्रभावना हुई।
18 काशीयी बुधराय, त्रिहु वरषांतरे हो लाल
तार्किक नाम धराय, आव्या पुर आगरे हो लाल - सुजसवेलीभास, गा. 2/8 19 उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद, लेखिका - डॉ. प्रीतिदर्शनाश्री, पृ. 28
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