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________________ पंडितजी के पैरों तले जमीन खिसकने लग गई। यशोविजयजी के द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर भी वादी पंडित न दे पाया। अंत में पराजय स्वीकार करके काशी से भाग गया। इस प्रकार उपाध्याय जी ने अनेक विद्वज्जन तथा अधिकारी वर्ग के समक्ष कश्मीर के पंडित जी से शास्त्रार्थ करके विजय की वरमाला पहनी । हिन्दू पंडितों ने एवं काशी नरेश ने इनके अगाध पाण्डित्य से मुग्ध होकर 'न्यायविशारद' और तार्किक शिरोमणि ऐसी दो पदवियों से अलंकृत किया और इनकी शोभायात्रा निकाली । इसका उल्लेख स्वयं उपाध्यायजी ने 'प्रतिमाशतक' नामक ग्रन्थ में किया है । " 16 सरस्वती मंत्र साधना काशी में गंगा नदी के किनारे यशोविजयजी ने ऐड-कार मन्त्र का जाप करके माँ शारदा को प्रसन्न कर उनसे वरदान प्राप्त किया। इस वरदान के प्रभाव से यशोविजयजी की प्रज्ञा न्याय, तर्क, काव्य और भाषा आदि के क्षेत्र में कल्पवृक्ष की तरह फलवती बनती गई । सरस्वती मंत्र साधना और उनसे प्राप्त वरदान के सम्बन्ध में स्वयं यशोविजयजी ने स्वरचित जंबूस्वामीरास में उल्लेख किया है। 17 शारदादेवी की कृपा से ही यशोविजयजी सिद्धसेन दिवाकर आदि के सकलनय पूर्ण शास्त्रों का स्वयं आलोडन करके उन पर टीका आदि का निर्माण तथा शताधिक ग्रन्थों का प्रणयन कर सके । 16 'पूर्व न्यायविशारदत्व विरूद काश्यां प्रदत्तं बुधैः न्यायचार्य पदं ततः कृत शतग्रन्थस्य यस्यार्पितम् यशोविजयजी कृत 'प्रतिमाशतक' ग्रन्थ, पृ. 1 36 श्लोक - 2 17 शारदा सार दया करो, आपी वचन सुरंग तू तुटी मुझ ऊपरे, जाप करत उपगंग तर्क काव्यों ते सदा, दीधो वर अभिराम भाषा पण करी कल्पतरू शाखसम परिणाम - जंबूस्वामीरास For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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