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अभ्यास पूर्ण हुआ। इस बात का उल्लेख 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में स्वयं यशोविजयजी ने आदरपूर्वक किया है। यथा -
तास पाटि विजय देवसूरीस्वर महिमावंत निरीहो तास पाटि विजय सिंह सूरीसर, सकल सूरिमां लीहो
ते गुरूना उत्तम उद्यमयी, गीतारथ गुण वाध्यो रे तस हित सीखतणइ अनुसारइ, ज्ञानयोग से साध्यो रे।। 17.4 इससे यह प्रतीत होता है कि यशोविजयजी की प्रखर प्रतिभा से प्रभावित होकर उनके गुरूओं ने उनके विद्याभ्यास में गहरा रस लिया तथा यशोविजयजी भी अपने गुरूओं की सान्निध्यता एवं प्रेरणा से अल्प समय में ही अनेक विद्याओं में प्रवीणता प्राप्त की।
वि.सं. 1699 में यशोविजयजी ने अहमदाबाद संघ के समक्ष एवं अपने गुरू नयविजयजी की उपस्थिति में आठ बड़े अवधानों का प्रयोग करके दिखाया। इन्होंने आठ सभाजनों द्वारा कही हुई आठ-आठ वस्तुओं को याद रखकर फिर क्रम से उन 64 वस्तुओं को कहकर बताया। इस अद्भुत प्रयोग के माध्यम से यशोविजयजी की अनूठी धारणाशक्ति एवं प्रखर बुद्धि को देखकर संपूर्ण अहमदाबाद संघ मंत्रमुग्ध बन गया। श्रीसंघ ने बालमुनि जसविजय में ओझल भविष्य की महान साधुता और विद्वता को देखकर खूब प्रशंसा की। इनकी बुद्धि चातुर्यता और उत्तर देने की विलक्षणता से प्रभावित होकर धनजी-सूरा नाम के श्रेष्ठी ने नयविजयजी से प्रार्थना करते हुए कहा- “गुरूदेव ! यशोविजयजी ज्ञान के लिए सुयोग्य पात्र हैं। परन्तु यहाँ उत्तम पण्डितों की व्यवस्था नहीं है। यदि आपश्री इनको विद्याधाम काशी ले जाकर षडदर्शनों का अभ्यास करायेंगे तो ये भविष्य में जिनशासन के महान प्रभावक बन सकते हैं।" इतना निवेदन करके श्रेष्ठी ने इस विद्याभ्यास हेतु होने वाले समस्त व्यय और पण्डितों का सत्कार करने की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर ले ली। 'शुभस्य
14 संवत सोल नवाणुओजी, राजनगरमा सुग्यान
साधि साखी संघनीजी, अष्ठ महा अवधान ....................... सुजसवेलीभास, गा. 1/15
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