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होता है। अतः जहां उत्पाद है वहां व्यय भी और वहीं ध्रौव्य भी है। इसकी चर्चा मैने प्रस्तुत शोधग्रन्थ के इस अध्याय में विस्तार से की है। उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप त्रिपदी कहां और किस रूप में घटित होती है, इसकी चर्चा भी इसी अध्याय में विशेष रूप से की है। प्रस्तुत अध्याय में हमने उपाध्याय यशोविजयजी के द्वारा उत्पाद आदि के जो विभिन्न रूप बताए गये हैं, उनकी भी चर्चा की है। सर्वप्रथम उपाध्याय यशोविजयजी ने उत्पाद के प्रयोगज उत्पाद और विनसाउत्पाद दो भेद करके पुनः विनसा उत्पाद के समुदायजनित विम्रसा उत्पाद के तीन भेद करते हुए अचित समुदायजनित विनसा उत्पाद, सचित समुदायजनित विनसा उत्पाद और मिश्र समुदायजनित विनसा उत्पाद ऐसे भेद किये हैं। इसी प्रकार उन्होंने व्यय के भी अनेक भेद करते हुए उनकी चर्चा की है। जैसे रूपान्तरण नाशरूप व्यय, अर्थान्तरणनाशरूप व्यय, समुदायविभागनाशरूप व्यय, अर्थान्तरण गमननाशरूप व्यय । यहां यह भी ज्ञातव्य है कि उपाध्यायजी ने अपनी इस कृति में उत्पाद और व्यय के साथ-साथ ध्रौव्य की भी चर्चा करके उसके भी भेद बतायें हैं, एक स्थूल ध्रुवभाव और दूसरा सूक्ष्म ध्रुवभाव।
इसी तृतीय अध्याय में द्रव्य के गुणों की चर्चा करते हुए उपाध्याय यशोविजयजी ने यह दिखाया है कि एक द्रव्य से दूसरे द्रव्य को पृथक करने के लिए कुछ विशिष्ट गुण होते हैं। जीव में चेतना, पुद्गल में वर्ण आदि, धर्मद्रव्य में गतिसहायकता, अधर्मद्रव्य में स्थिति सहायकता, आकाश में दूसरे द्रव्यों को स्थान देना और काल में दूसरे द्रव्यों के वर्तना में सहायक बनना विशिष्ट गुण है। इस प्रकार षड्द्रव्यों के अपने-अपने विशिष्ट गुण होते हैं जो एक द्रव्य को दूसरे द्रव्य से पृथक् करते हैं। किन्तु दूसरी ओर द्रव्यत्व, अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व और अगुरूलघुत्व ये छह गुण सामान्य होते हैं जो सभी द्रव्यों में पाये जाते है। इस प्रकार द्रव्य गुणों का समूह है। हमें यहां एक बात को समझ लेना है कि द्रव्य मात्र पृथक्-पृथक् गुणों का समूह नहीं है, अपितु सामान्य गुणों के साथ किसी एक विशिष्ट गुण युक्त यथार्थ सत्ता को ही द्रव्य कहते हैं सामान्यतया उपाध्याय यशोविजयजी इस बात को स्वीकार करते हैं कि वैसे तो प्रत्येक द्रव्य में अनंत गुण
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