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________________ 502 का प्रधान रूप से कथन करनेवाला कोई शब्द नहीं होने से द्रव्य-गुण-पर्याय का परस्पर सम्बन्ध कथंचित् अवक्तव्य बन जाता है। 6. स्याद् अभिन्नमवक्तव्यमेव : प्रथम केवल द्रव्यार्थिकनय की अर्पणा करके बाद में द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय की युगपत् अर्पणा करने से द्रव्य-गुण-पर्याय का परस्पर सम्बन्ध कथंचित् अभिन्नत्वरूप और कथंचित् अवक्तव्यरूप है।1462 द्रव्यार्थिकनय प्रधान रूप से अभेदग्राही होने से अभिन्नता को मुख्य रूप से अपने दृष्टिपथ में लेता है तथा उभयनयों की युगपत् विवक्षा करने पर उभयस्वरूप को एकसाथ कथन करनेवाला शब्द नहीं होने से द्रव्य-गुण-पर्याय का परस्पर सम्बन्ध कथंचिद् अवक्तव्य बन जाता 7. स्याद्भिन्नाभिन्नमवक्तव्यमेव : क्रमशः पर्यायार्थिकनय और द्रव्यार्थिकनय की प्रधानरूप से विवक्षा करने के पश्चात् उभयनयों की युगपत् प्रधानरूप से विवक्षा करने पर द्रव्य-गुण–पर्याय का परस्पर सम्बन्ध कथंचिद् भिन्न, कथंचिद् अभिन्न और कथंचिद् अवक्तव्य होता है।463 इस प्रकार हम देखते हैं उपरोक्त सभी आधारों पर द्रव्य, गुण एवं पर्याय में पारस्परिक सम्बन्ध एकान्तभेदरूप और एकान्त अभेदरूप न होकर भेद-अभेद रूप ही सिद्ध होता है। 1462 द्रव्यारथ नइं उभय ग्रहियाथी, अभिन्न तेह अवाच्यो रे। .......... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 4/13 का पूर्वार्ध 1463 क्रम युगपत् नय उभय ग्रहियाथी, भिन्न अभिन्न अवाच्यो रे..... वही, गा. 4/13 का उत्तरार्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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