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________________ दीक्षा बालक जसवंतकुमार का समग्र परिवार ही तब त्याग, वैराग्य और स्वाध्याय के रंगों से रंगा हुआ था । पूज्य श्री नयविजयजी कुणगेर (कुमारगिरि) गांव में चातुर्मास सम्पन्न करके वि.सं. 1688 में कनोडा पधारे। सौभाग्यदेवी अपने पुत्र के जीवन को धर्म संस्कारों से सिंचित करने की भावना से प्रतिदिन पुत्र जसवंत को साथ लेकर देवदर्शन और गुरूवंदनार्थ जाती थी । गुरूमुख से 'भक्तामर स्तोत्र' का श्रवण करना सौभाग्यदेवी का नियम बन गया था । यहाँ तक कि 'भक्तामर स्तोत्र' को श्रवण किए बिना कुछ खाना-पीना नहीं करती थी। एक बार श्रावण माह में लगातार तीन दिन तक वर्षा होती रही और उपाश्रय तक नहीं पहुंच पाने के कारण सौभाग्यदेवी ने अपने नियमानुसार अट्ठम की तपश्चर्या कर ली। जब चौथे दिन सुबह भी सौभाग्यदेवी ने कुछ न खाया तो जसवंत ने न खाने का कारण पूछा। माता ने अपने नियम की बात बताई। माता के नियम को जानकर जसवंत कहने लगा कि – “माँ मुझे 'भक्तामरस्तोत्र' आता है ।" "मैं आपको सुनाऊँ", इतना कहकर 'भक्तामर स्तोत्र' सुनाने लग गया। अपने पुत्र के मुख से शुद्ध 'भक्तामर स्तोत्र' का पाठ सुनकर सौभाग्यदेवी के हर्ष की सीमा नहीं रही। जब गुरू महाराज इस बात से अवगत हुए तो वे भी बालक की अद्भुत स्मरण शक्ति से आश्चर्यचकित और आनंदित हुए । 32 श्री नयविजयजी ने अपनी पारखी दृष्टि से जसवंत की बुद्धिमत्ता, चतुरता और विनयशीलता आदि उत्तम गुणों को देखकर बालक में छिपे महान शासन प्रभावक गुण को पहचान लिया । यथा अवसर देखकर सौभाग्यदेवी और जसवंत को वैराग्यवर्धक धर्मोपदेश दिया तथा माता से बालक जसवंत को जिनशासन के चरणों में समर्पित करने के लिए आग्रह किया । "मेरा पुत्र कुलदीपक बनेगा तो केवल मेरे घर की चार दीवारों को ही प्रकाशित करेगा और यदि पुत्र को जिनशासन के लिए समर्पित कर दूं तो मेरे पुत्र की अलौकिक ज्ञान - आभा से संपूर्ण जैनाकाश प्रकाशित होगा', ऐसे धार्मिक विचारों से प्रेरित होकर सौभाग्यदेवी ने अपने पुत्र जसवंत को नयविजयजी के चरणों में अर्पित कर दिया। बालक जसवंत ने भी पूर्वभव के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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