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सूंघकर फूल का प्रत्यक्ष किया जाता है। जैनदर्शन के अभिमत में व्यवहारनय से द्रव्य (द्रव्य और गुणपर्यायों में कथंचित् अभेद मानने पर) पाँचों इन्द्रियों से अगोचर है और निश्चयनय से (कथंचित् भेद मानने पर द्रव्य अतीन्द्रिय है। इस प्रकार नय के भेद से द्रव्य इन्द्रियगोचर और इन्द्रिय अगोचर दोनों है।
संज्ञाभेद :
प्रस्तुत में संज्ञा शब्द से तात्पर्य नाम अभिप्सित है। द्रव्य-गुण–पर्याय इस प्रकार तीनों का नाम भिन्न-भिन्न है।1418 जहाँ नाम या संज्ञा भेद होता है वहाँ कुछ अंश में वस्तुभेद (यदि पर्यायवाची नहीं हो तो) भी अवश्य होता है। इसलिए जिस प्रकार घट नामक वस्तु से पट नामक वस्तु भिन्न है उसी प्रकार द्रव्य से गुण–पर्याय का और गुण–पर्याय से द्रव्य का कथंचित् भेद अवश्यमेव है।
संख्या भेद :
संख्या की अपेक्षा से द्रव्य और गुण–पर्यायों में भेद दृष्टिगोचर होता है। यहाँ संख्या शब्द का अर्थ गणना है।1419 जाति के आश्रय से जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल के रूप में मूल द्रव्य छह है। छह से अधिक द्रव्यों का अस्तित्व नहीं है। परन्तु गुण और पर्याय अनंत है। एक-एक द्रव्य के अनंत-अनंत गुण और पर्यायें है। जैसे कोई भी विवक्षित जीवद्रव्य एक होने पर भी उसके अस्तित्व, वस्तुत्व, प्रदेशत्व आदि सामान्य गुण और ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य, आनंद आदि विशेष गुण अनंत है। पुनः इन्हीं गुणों की षट्गुण हानिवृद्धि रूप क्षयोपशम भावजन्य मतिज्ञान आदि पर्यायें तथा औदायिक भावजन्य नरनारकादि पर्यायें अनंत है। इस प्रकार संख्या की दृष्टि से भी द्रव्यादि में परस्पर भेद है।
1418 संज्ञा क नाम, तेहथी भेद, –'द्रव्य' नाम 1 'गुण' नाम 2, ‘पर्याय' नाम 3 ....... वही. गा. 2/16 का टब्बा 1419 संख्या-गणना, तेहथी भेद, "द्रव्य 6 गुण अनेक पर्याय अनेक"..... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.2/16 का टब्बा
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