SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 485 शक्कर में मिठास इत्यादि में प्रथम शब्द में सप्तमी विभक्ति और द्वितीय पद में प्रथमा विभक्ति है। व्यधिकरण रूप से बोध होने से कथंचित भेद है। यह भेद नहीं होता तो आत्मा ही ज्ञान रूप, घट ही घटाकार रूप है। ऐसा समानाधिकरण रूप से बोध होना चाहिए। परन्तु ऐसा बोध नहीं होता है। इसलिए कथंचित भेद अवश्य है।1414 घट-पटादि द्रव्यात्मक पदार्थ आधार के रूप में प्रतीत होते हैं और गुण–पर्याय आधेय के रूप में प्रतीत होते हैं। 1415 नील-पीतादि है ऐसे वाक्योच्चारण में घट–पट द्रव्य सप्तम्यन्त होने से आधाररूप परिलक्षित होते हैं। अतः आधार-आधेय भाव के द्वारा भी द्रव्य से गुण–पर्यायों का कथंचित् भेद सिद्ध होता है। एकेन्द्रियगोचर और एक से अधिक इन्द्रियगोचर : ___रूप-रस-गन्ध-स्पर्शादि गुण और उनके नील, पीत आदि 20 उत्तरभेदरूप पर्याय एक-एक इन्द्रिय से ग्राह्य है। जैसे रूप और उसके उत्तरभेद नील, पीतादि एक चक्षुरिन्द्रिय से ही ग्राह्य हैं। रस और उसके उत्तरभेद तिक्त, कटु आदि एक रसनेन्द्रिय से, गन्ध और उसके सुरभि आदि भेद घ्राणेन्द्रिय से और स्पर्श तथा उसके स्निग्ध रूक्ष आदि भेद स्पर्शनेन्द्रिय से ग्राह्य है। घट-पट आदि द्रव्य चक्षुरिन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय इन दो इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य हैं।1416 अंधकार में घटादि स्पर्शनेन्द्रिय से और प्रकाश में चक्षुरिन्द्रिय से ग्राह्य है। इस प्रकार गुण-पर्याय एक इन्द्रिय गोचर और द्रव्य द्वीन्द्रियगोचर है। द्रव्य को द्वीन्द्रियगोचर नैयायिकों-वैशेषिकों के अभिमत अनुसार कहा है। जैनदर्शन के अनुसार तो घ्राणेन्द्रिय आदि द्वारा भी द्रव्य ग्राह्य है। अन्यथा 'मैं फूल सूंघता हूं', यह प्रतीति ही भ्रान्तपूर्ण हो जायेगी।1417 घ्राणेन्द्रिय द्वारा 1414 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग-1, –धीरजलाल डाह्यालाल महेता, पृ. 96 1415 द्रव्य आधार घटादिक दीसइ, गुण पर्याय आधेयो रे। ............... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/15 का टब्बा 1416 रूपादिक गण पर्याय एक इन्द्रिय गोचर क. विषय छइ. जिम रूप चक्षुरिन्द्रियइं ज जणाइं, रस ते रसनेन्द्रियइं ज, इत्यादिक. अनई घटादिक द्रव्य छइ, ते दोहिं चक्षुरिन्द्रिय अनइं स्पर्शेनेन्द्रियः ए 2 इन्द्रियइं करीनइं जाणो छे ......... ........ वही गा. 2/15 का टब्बा 1417 स्वमतई गंधादिक पर्याय द्वारइं घ्राणेन्द्रियादिकई पणिद्रव्य प्रत्यक्ष छइं, नही तो "कुसुम गंधु छु" इत्यादि ज्ञाननइं भ्रान्तपणुं थाइ ते जाणवू. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy