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द्रव्य-गुण-पर्याय का परस्पर सम्बन्ध कथंचित भिन्न है :
द्रव्य, गुण और पर्याय के मध्य कथंचित भेद और कथंचित अभेद दोनों हैं। द्रव्य से गुण और द्रव्य से पर्याय एकान्त रूप से भिन्न या अभिन्न नहीं है, अपितु दोनों के मध्य सापेक्ष भेद और अभेद हैं। ज्ञातव्य है कि यह सापेक्ष भेद और अभेद काल्पनिक नहीं होकर पारमार्थिकरूप से विद्यमान है। उपाध्याय यशोविजयजी ने अनेक युक्तियों से सर्वप्रथम इसी भेद-अभेद को स्पष्ट किया है। यथा -
एक और अनेक :
आधारभूत द्रव्य एक होता है और आधेयरूप गुण और पर्याय अनेक होते हैं।1412 जैसे जीवद्रव्य एक है, किन्तु उसके ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य आदि गुण और उन गुणों की हानि-वृद्धि रूप क्षयोपशमिक भाव के मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि पर्यायें और औदायिकभाव के नर-नारकादि पर्यायें अनेक हैं। विवक्षित एक घट में घटस्वरूप द्रव्य एक है और वर्ण-गंध-रस-स्पर्श-संस्थान आदि गुण अनेक हैं तथा उन्हीं गुणों के परिवर्तनरूप नील-पीतादि पर्याय अनेक हैं।
आधार-आधेय :
आधार और आधेय सम्बन्ध के आधार पर भी द्रव्य और गुण–पर्याय में भेद है।1413 द्रव्य, गुण और पर्यायों को रखने वाला आधार तत्त्व है जबकि गुण–पर्याय द्रव्य में रहनेवाले आधेय तत्त्व हैं। यदि द्रव्य और गुण-पर्याय में आधार आधेय सम्बन्ध के आधार पर कथंचित भेद नहीं है तो समानाधिकरण के द्वारा बोध होना चाहिए और व्यधिकरण से बोध नहीं होना चाहिए। आत्मा में ज्ञान, घट में रूप,
1412 एक अनेक रूपथी इणि परि, भेद परस्पर भावो रे ...... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/14 का पूर्वार्ध 1413 आधारधेयादिक भाविं, इमज भेद मनि ल्हावो रे ............ वही, गा. 2/14 का उत्तरार्ध
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