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व्यवहार नहीं किया जाता है। परन्तु यही तृण जब गाय की खुराक बनकर दूध के रूप में परिणत होता है, तब 'दूध में घृत की शक्ति है' ऐसा लोक व्यवहार होता है। अतः दूध में घृत की समुचित शक्ति है।1408
इसी प्रकार भव्यजीव में अचरमावर्तकाल में रही हुई मोक्ष प्राप्ति की शक्ति ओघशक्ति है और चरमावर्तकाल में रही हुई मोक्ष प्राप्ति की शक्ति समुचित शक्ति है।1409 यदि अचरमावर्त में ओघ रूप से मोक्षप्राप्ति की शक्ति नहीं होती तो चरमावर्त में भी मोक्ष प्राप्ति की शक्ति का आविर्भाव नहीं हो सकता था। क्योंकि सर्वथा असत् पदार्थ का आविर्भाव कदापि नहीं होता है। 1410
इस प्रकार प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने गुण और पर्यायों को प्राप्त करने की ओघशक्ति और समुचितशक्ति से युक्त होता है। सुवर्ण द्रव्य में कुंडल-कंगन आदि पर्यायों को, मृद्रव्य में पिंड-स्थास आदि पर्यायों को और जीवद्रव्य में नर-नारकादि पर्यायों को प्राप्त करने की शक्ति रही हुई है। द्रव्य उन-उन पर्यायों का उपादान कारण है। उपादान कारणभूत द्रव्य में ही अपने-अपने गुण-पर्यायों को प्राप्त करने की शक्ति विद्यमान रहती है। दूरतर कारणभूत उपादान में सामान्यशक्ति (ओघशक्ति) रूप योग्यता और निकटतम कारणभूत उपादान में परिपक्वशक्तिरूप (समुचितशक्तिरूप) योग्यता रही हुई है।
इस प्रकार द्रव्य अपने गुण–पर्यायों को प्राप्त करने वाला शक्तिरूप है और गुण–पर्याय द्रव्य में प्रगट अथवा व्यक्त होने से व्यक्तिस्वरूप हैं।1411
1408 पृतनी शक्ति यथा तण भावई जाणी पिण न कहाई रे।
दुग्धादिक भावइ ते जननइं, भाषी चित्त सुहाइ रे।। ............... वही, गा. 2/7 1409 धरम शक्ति प्राणीनइं, पूरव पुद्गलनइं आवर्तइ रे।
ओघइ, समुचित जिम वली कहिइ, छेहलिं आवर्तइ रे।। ........... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/8 1410 नहीं तो छेहलई पुद्गलपरावर्तइ ते शक्ति न आवइ. "नास्तो विद्यते भाव" । इत्यादि वचनात्
.............. वही, गा. 2/8 का टब्बा 1411 इम शक्तिरूपइं द्रव्य वखाणिउं, हवइ-व्यक्तिरूप गुणपर्याय वखानई छई - .वही, गा. 2/10 का टब्बा
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