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________________ {बाल, युवा, वृद्धावस्था की अपेक्षा से } उपचार प्रधान नैगमनय की अपेक्षा से जो सामान्य है, वही अन्य अपेक्षा से विशेष और जो विशेष है वही अन्य अपेक्षा से सामान्य हो जाता है। परन्तु अभेदप्रधान शुद्ध संग्रहनय की दृष्टि से सत् रूप अन्तिम परसामान्य ही सामान्य है अर्थात् सत्ता धर्म की अपेक्षा से सदद्वैत्वाद रूप एक ही प्रकार का द्रव्य है | 1399 तिर्यक्सामान्य भिन्न–भिन्न व्यक्तियों (वस्तुओं) में एकरूपता या एकाकारता रूप जो द्रव्यशक्ति है, वह तिर्यक्सामान्य है । जैसे 'यह भी घट है, 'यह भी घट है' इत्यादि । 1400 जो शक्ति समकालीन और समान आकारवाले, किन्तु भिन्न-भिन्न द्रव्यों से बने पदार्थों में एकाकारता की समान प्रतीति कराती है, वह द्रव्यशक्ति ही तिर्यक्सामान्य है । उदाहरणार्थ सोने से, चाँदी से, ताम्बे से, स्टील से, पीतल से मिट्टी से निर्मित अनेक घटों में घटाकारता के रूप में 'यह भी घट है', 'यह भी घट है' ऐसी समान घटत्व प्रतीति जिस शक्ति से होती है, उस शक्ति को ही तिर्यक्सामान्य कहा गया है। इस सामान्य में एक साथ दृष्टि में आने वाले हजारों घटों को घटत्व के आधार पर समान रूप से देखा जाता है। यहाँ कालभेद नहीं है, किन्तु क्षेत्रभेद हैं। क्योंकि हजारों घटों का क्षेत्र भिन्न-भिन्न है । तिर्यक् सामान्य को नहीं मानने पर एक घट दूसरे घट से उतना ही अत्यन्त भिन्न हो जायेगा जितना पट से भिन्न है । जिस प्रकार घट की जलधारण क्रिया पट से नहीं होती है, उसी प्रकार अन्य घट से भी जलधारण क्रिया नहीं हो सकेगी। परन्तु घटत्व सामान्य के कारण एक घट की तरह अन्य - अन्य घट भी जलधारण 479 1399 १ इन नर-नारकादि द्रव्य जीवद्रव्यनो पणि विशेष जाणवो, ए सर्व नैमगनयनुं मत शुद्ध संग्रहनयनइं मतइं तो सदद्वैतवादहं एक ज द्रव्य आवइं ते जाणवुं वही, गा. 2/4 का टब्बा । 1400 भिन्न विगतिमां रूप एक जो, द्रव्यशक्ति जग दाखइ रे । तिर्यक् सामान्य कहिजइ, जिम घट-घट पण राखइ रे ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.2/5 www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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