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________________ 478 ऊर्ध्वतासामान्य है। 'वही का वही है' ऐसा अनुगत आकार (अन्वयपन) की प्रतीति जिससे होती है, वह यशोविजयजी की दृष्टि में ऊर्ध्वतासामान्य है।1396 बिना ऊर्ध्वतासामान्य के अनुगताकार (अन्वयपन) अर्थात् 'यह वही मिट्टी है, 'यह वही जीव है' आदि की प्रतीति ही नहीं होगी। मृत्पिण्ड –स्थास, कोश, कुशूल, घट, कपाल आदि का परस्पर कोई पूर्वापर सम्बन्ध न रहकर प्रत्येक पर्याय स्वतन्त्र पर्याय हो जायेगी। घट में पूरण-गलन रूप पर्यायें प्रतिक्षण बदलती रहने से प्रतिसमय का घट नवीन-नवीन रूप ही प्रतीत होने लग जाएगा। इससे 'यह वही घट है ऐसा व्यवहार भी संभव नहीं हो पायेगा। इस प्रकार सभी विशेष ही हो जाने से तो क्षणिकवादी बौद्धों का मत ही सिद्ध होगा। 1997 परन्तु यह मत युक्ति और अनुभव दोनों से विरूद्ध है। जिस प्रकार एक सूत्र के बिना मणकों की धारा स्थायी नहीं रह सकती है, वृक्षत्व के बिना मूल शाखा, प्रशाखा, फल, पत्र आदि घटित नहीं होते हैं, उसी प्रकार अन्वयी द्रव्य के बिना केवल विशेष पर्यायों का भी कोई अस्तित्व नहीं हो सकता है। इसलिए घट में प्रतिक्षण उत्पन्न होनेवाली विशेष–विशेष पर्यायों में 'यह एक ही घट है ऐसा घटात्मक अन्वयी द्रव्य को तथा पिंड-स्थास आदि विभिन्न अवस्थाओं में 'यह एक ही मिट्टी है ऐसे मृदात्मक अन्वयी द्रव्य को स्वीकारना आवश्यक है। इन दोनों अन्वयी द्रव्य में केवल इतना ही अन्तर है कि घटद्रव्य का जीवनकाल अल्प होने से मृद्रव्य की अपेक्षा से अल्पपर्यायों में व्याप्त है, जबकि मृद्रव्य का जीवनकाल अपेक्षाकृत अधिक होने से मृद्रव्य अधिक पर्यायों में व्याप्त है।1398 इसलिए मृद्रव्य को परऊर्ध्वतासामान्य और घटद्रव्य को अपरऊर्ध्वतासामान्य कहा गया है। मनुष्य और जीव में जीव पर सामान्य है और मनुष्य अपर सामान्य है। 1396 जिहां कालभेदइं-अनुगताकार प्रतीति उपजइ, तिहां उर्ध्वतासामान्य कहिइं - वही. गा.2/5 का टब्बा 1397 सर्व विशेषरूप थतां क्षणिकवादी बौद्धनुं मत आवइं . - द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/4 का टब्बा 1398 ते माटिं घटादिद्रव्य, अनइं तेहनां सामान्य मृदादि द्रव्य अनुभवइं अनुसारइं परस्पर ऊर्ध्वतासामान्य अवश्य मानवां, .................. .............. वही, गा. 2/4 का टब्बा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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