________________
जन्मस्थल
भारतवर्ष के पश्चिमी भाग में शत्रुंजय, गिरनार, शंखेश्वर आदि तीर्थों से सुशोभित, हेमचन्द्र जैसे जिन शासन प्रभावक और विद्वान आचार्यों के चरणरज से पावन एवं 18 देशों में अहिंसा का प्रवर्तन कराने वाले कुमारपाल जैसे राजेश्वरों से शासित गुजरात प्रदेश है। इसी गुजरात की धर्मभूमि पर गगनचुम्बी जिनालयों से सुसज्जित पाटण नामक शहर है। इसी पाटन नगर के समीप धीणोज नाम का गांव है, वहाँ से कुछ दूर 'कनोडा' नाम का छोटा सा गांव है, जहाँ आज जैनों की बस्ती नहींवत् है। संभवतः 16 वीं एवं 17 वीं सदी में यहाँ जैनों की बस्ती अधिक रही होगी। उपासकदशांगसूत्र की एक प्रति (पाटण हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञान मंदिर क्रमांक 133) में इस प्रकार की पुष्पिका मिलती है
-
"श्री अंचल गच्छे श्री श्री भवसागरसूरि सक्ष वा जिनवर्धनगणि श्री उपासकदशांगसूत्रं श्री कणुडा ग्रामे संवत 1600 वर्षे भाद्रवा सुदि 6 श्वौ लक्षतं ।
29
अतः इस पुष्पिका से यह फलित होता है कि सं. 1600 में 'कनोडा' जैन साधु-साध्वी के चातुर्मास योग्य जैन बस्तीवाला समृद्ध गांव था । इसी कनोडा गांव में धर्मनिष्ठ नारायण नाम के एक जैन वणिक और उनकी धर्मपत्नी सौभाग्यदेवी रहते थे। सौभाग्यदेवी ने यथासमय यशस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया। बालक का नाम 'जसवंतकुमार' रखा गया जो आगे जाकर जिनशासन में उपाध्याय पद से अलंकृत होकर न्याय विशारद महोपाध्याय यशोविजयजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
5
सुजसवेलीभास में यशोविजयजी का जन्मस्थान कनोडा गांव था, ऐसा स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है । परन्तु नयविजयजी कुणगेर में चातुर्मास पूर्ण करके सं. 1688 में कनोडा पधारे थे। इसी समय बालक जसवंत ने अपनी माता के साथ नयविजयजी
Jain Education International
उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रन्थ, सं. प्रद्युम्नविजयगणि, जयन्त कोठारी, कान्तिभाई बी. शाह, पृ. 2
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org