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________________ 465 पर्यायार्थिकनय की तरह गुणार्थिकनय का भी प्रतिपादन प्राप्त होना चाहिए था। 360 परन्तु जैनशास्त्रों में गुणार्थिकनय का उल्लेख सर्वथा अनुपलब्ध है। एतदर्थ जैसे गुणार्थिक नामक तीसरा नय नहीं है उसी प्रकार गुण नामक तीसरा पदार्थ भी परमार्थ से नहीं है। केवल उपचार से गुण और पर्याय ऐसा भेद किया जाता है। सन्मतिप्रकरण में भी इसी बात की पुष्टि की गई है कि यदि भगवान की दृष्टि में गुण, पर्याय से भिन्न द्रव्य का कोई धर्म होता है तो वे पर्यायास्तिकनय के भांति गुणास्तिकनय की भी प्ररूपणा करते।1381 इसलिए गुण नामक कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं भगवान ने आगम सूत्रों में गौतम आदि गणधरों के समक्ष गुण को 'पर्याय' ऐसी संज्ञा से ही सम्बोधित किया है। कहीं भी रूपगुण, रसगुण, गंधगुण और स्पर्शगुण कहकर वर्ण आदि के साथ गुण शब्द को नहीं लगाया अपितु वर्ण आदि के साथ ‘पर्याय' शब्द लगाकर वण्णपज्जवा, गंधपज्जवा आदि शब्दों का ही प्रयोग किया है। इसलिए रूपादि गुणों को गुण न कहकर पर्याय ही कहना चाहिए।362_ यहाँ कोई व्यक्ति ऐसी शंका उपस्थित कर सकता है कि आगमों में 'एकगुणकालए' आदि कहकर काला आदि वर्गों के विषय में एकगुण काला, द्विगुण काला, अनन्तगुण काला आदि जो व्यवहार है, उसमें 'गुण' का प्रतिपादन हुआ है जो पर्याय के अर्थ से भिन्न है। यशोविजयजी इस शंका का समाधान प्रस्तुत करते हुए कहते हैं एकगुणकाला, द्विगुणकाला आदि में जो 'गुण' शब्द प्रयुक्त हुआ है वह गणितशास्त्र के गुणाकार, भागाकार आदि विषय सम्बन्धी गुणाकार को सूचित करता 1360 जो गुण त्रीजो होइ पदारथ, तो त्रीजो नय लहिइ रे। द्रव्यारथ पर्यायारथ नय, दोइ ज सुत्रिं कहिइं रे।। ..... .... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/12 1361 दो उण णया भगवया दव्वट्ठिय-पज्जवट्ठिया नियया। एत्तो य गुणविसेसे गुणद्वियणओ वि जुज्जतो।। .................. सन्मतिप्रकरण, गा. 3/10 1362 अ) जं च पुण भगवया, तेसु तेसु सुत्तेसु गोयमाईणं। पज्जवसण्णा णियया, वागरिया तेण पज्जाया।। ................... सन्मतिप्रकरण, गा. 3/11 ब) रूपादिकनई गुण कही सूत्रिं बोल्या नथी, पणि वण्णपज्जवा, गंधपज्जवा इत्यादिक पयार्यशब्दई बोलाव्या छइ, ते माटिं-ते पर्याय कहिइं, पणि गुण नकहिई ...........-द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/12 का टब्बा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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