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है। यहाँ गुण शब्द कृष्णादि वर्गों की तरतमता को अर्थात् गुणाकार रूप पर्याय विशेष को सूचित करनेवाला संख्यावाची शब्द है न कि गुण नामक किसी स्वतंत्र पदार्थ को सूचित करनेवाला शब्द है।1363 यशोविजयजी ने सन्मतिप्रकरण की गाथा 3/14 को उद्धृत किया है। तदानुसार भी रूपादि के बोधक गुण शब्द के अतिरिक्त जो भी एकगुणकाला आदि में गुण शब्द है वह 'गुण' नामक ज्ञेयविषय का बोधक न होकर पर्यायों रूप विशेषों की संख्या का बोधक ही सिद्ध होता है।1364 अतएव गुणाकार अर्थ जिसको सूचित करता है वह तरमतारूप पर्याय ही सिद्ध होने से पर्याय से भिन्न कोई गुणरूप द्रव्यधर्म सिद्ध नहीं होता है।
इसी सन्मतिप्रकरण'365 में आगे व्यवहारिक उदाहरण के माध्यम से समझाया है कि गुण और पर्याय दोनों भिन्नार्थक नहीं हैं। 'ये दस वस्तुएं हैं' 'यह दसगुणी है' ऐसा सामान्यतया व्यवहार किया जाता है। यहाँ व्यवहार में गुण शब्द आता है किन्तु यहां यह 'दस' की संख्या का वाचक है। जहाँ पहले व्यवहार में दसत्व संख्या के लिए दस शब्द का प्रयोग हुआ है वहाँ दूसरे व्यवहार में एक ही धर्मी के परिमाण का तारतम्य बताने के लिए गुण शब्द के साथ दस शब्द आया है। इसी प्रकार एकगुणकाला, द्विगुणकाला इत्यादि में प्रयुक्त गुण शब्द भी धर्मीगत धर्म के परिमाण का तारतम्य ही बताने से पर्याय शब्द के अर्थ का बोधक होने के अतिरिक्त अन्य किसी अर्थ का बोधक नहीं है। इस प्रकार तार्किक प्रतिभा के धनी आचार्य सिद्धसेन ने तर्क और आगम दोनों से गुण और पर्याय की अभिन्नता को सिद्ध किया है।
सम्मतिप्रकरण के तृतीय खण्ड के 10 से 15 तक की गाथाओं (जिनको यशोविजयजी ने 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' के गाथा 2/12 के टब्बे में उद्धृत किया है} के विवेचन के बाद पं. सुखलालजी ने निष्कर्ष के रूप में यही लिखा है -ऊपर के
1363 अनइं -"एकगणकालए" इत्यादिक ठामि जे गण शब्द छइं. ते गणितशास्त्रसिद्ध पर्याय विशेष
संख्यावाची छइं, पणि ते वचन गुणास्तिकनय विषयवाची नथी, .......... वही, गा. 2/12 का टब्बा 1364 गुणसद्दमन्तरेण वि तं तु पज्जवविसेससंखाणं।
सिज्झइ नवरं संखाण-सत्थधम्मो ण य गुणोति।। . ........................ सन्मतिप्रकरण, गा. 3/14 1365 जह दससु दसगुणम्मि य एकम्मि दसत्तणं समं चेव अहियम्मि वि गुणसद्दे, तहेव एयंपि दट्ठव्वं - ........
वही, गा. 3/15
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