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________________ 1349 1350 की दृष्टि से व्यक्ति में भेद है, किन्तु देवदत्त नामक मनुष्य की अपेक्षा से अभेद हैं। 1 इस प्रकार द्रव्य और पर्याय एक ही वस्तुरूप है । परन्तु दोनों का स्वभाव, संज्ञा, संख्या, और प्रयोजन आदि भिन्न-भिन्न होने से कथंचित् भेद भी है। द्रव्य त्रिकालवर्ती है, पर्याय वर्तमान काल की होती है । द्रव्य की द्रव्य संज्ञा है और पर्याय की पर्याय संज्ञा है । द्रव्य एक है और पर्याय अनेक है। संक्षेप में लक्षण की अपेक्षा द्रव्य और पर्याय में भेद होने पर भी पर्याय द्रव्य से पृथक् नहीं पायी जाती है। इसलिए दोनों में अभेद भी है । 1351 दोनों एक क्षेत्रावगाही है । द्रव्य धर्मी है और पर्याय धर्म है। इसलिए धर्म और धर्मी की विवक्षासेतो द्रव्य और पर्याय में भेद किया जा सकता है । परन्तु वस्तुत्व रूप से भेद नहीं किया जा सकता है। 1352 क्योंकि एक क्षेत्रावगाही होने से दोनों अभिन्न भी हैं। इस तरह द्रव्य और पर्याय में कथंचित् भेद और कथंचित् अभेद है । निष्कर्ष यह है कि द्रव्य और पर्याय परस्पर अभिन्न भी हैं और भिन्न भी हैं । 1349 बालभाव जे प्राणी दीसइ, तरूण भाव ते न्यारो रे । देवदत्त भावइ ते एक ज, अविरोधइ निरधारो रे ।। 1350 आत्ममीमांसा, कारिका, 71, 72 1351 जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भाग-2, पृ. 459 1352 दव्वाणपज्जयाणं, धम्मविवक्खाइ कीरइ भेओ वत्थुसरूवेण पुणो ण हि भेओ सक्कदे काउं Jain Education International 459 कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गा. 245 For Personal & Private Use Only द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 4/5 www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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