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________________ 455 कथंचित् भेद और अभेद दोनों सम्बन्ध हैं। अतः द्रव्य और गुण-पर्यायों में भी कथंचिद् भेद और अभेद सम्बन्ध है। इस विवेचन का फलितार्थ यही है कि न्यायदर्शन द्रव्य और गुण में एकान्त भेद को स्वीकार करने से असत्कार्यवाद का समर्थक है। जबकि जैनदर्शन द्रव्य और गुण–पर्यायों में भेदाभेद को स्वीकार करने से, कार्यकारण सम्बन्धी सतासत्कार्यवाद का पोषक है। न्यायदर्शन और जैनदर्शन के गुण सम्बन्धी अवधारणा में दूसरा अन्तर यह है कि न्यायदर्शन रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथ्कत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष प्रयत्न, गुरूत्व, द्रवत्व, स्नेह, संस्कार, धर्म, अधर्म और शब्द इन चौबीस गुणों को मानता है। जैनदर्शन अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, प्रदेशत्व, अगुरूलघुत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व इन दस सामान्य गुणों को एवं गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहहेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व इन सोलह विशेष गुणों को मानता है। अतः जैनदर्शन में गुणों की संख्या छब्बीस है। द्रव्य और पर्याय का भेदाभेद : दर्शन जगत में द्रव्य और पर्याय के परस्पर सम्बन्ध को लेकर भिन्न-भिन्न विचारधाराओं का प्रादुर्भाव हुआ। परिणामस्वरूप कुछ दार्शनिकों ने द्रव्य और पर्याय में एकान्तभेद को स्वीकार किया तो कुछ अन्य दार्शनिकों ने एकान्त अभेद को अपनी सहमति प्रदान की। जैनदर्शन द्रव्य और पर्याय में परस्पर एकान्तभेद अथवा एकान्त अभेद को स्वीकार नहीं करता है, किन्तु वह भेदाभेद का समर्थक है। भेदवाद और अभेदवाद का सुन्दर समन्वय जैनदर्शन की विशिष्ट देन है। जैनदर्शन के अनुसार भेद और अभेद इस प्रकार मिले हुए हैं कि एक के बिना दूसरे की उपलब्धि संभव नहीं हो सकती है। जहाँ भेद है वहां अपेक्षा विशेष से अभेद भी है तथा जहां अभेद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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