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________________ 451 है। इसका आशय कदापि यह नही है कि गुण–पर्याय कोई दूसरे पदार्थ हैं, जो द्रव्य में रहते हैं और द्रव्य उनका आधारभूत कोई दूसरा पदार्थ है। परन्तु त्रिकालवर्ती पर्यायों का समूह ही द्रव्य है। जैसे सुवर्ण से उसका गुण पीलापना और कुण्डलादि पर्याय भिन्न नहीं है, वैसे ही द्रव्य से भिन्न गुण और पर्याय नहीं है। परन्तु जैसे पीलापना या कुण्डलादि द्रव्य नहीं है उसी प्रकार गुण या पर्याय भी द्रव्य नहीं है। गुण और गुणी में प्रदेश भेद नहीं है। जो प्रदेश पीलापन और कुण्डलादि के हैं वे ही प्रदेश सुवर्ण द्रव्य के हैं। इस प्रकार उपाध्याय यशोविजयजी के अनुसार द्रव्य और गुण में प्रदेश भेद नहीं होने पर भी संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन, इन्द्रियग्राह्ययता आदि की दृष्टि से भेद भी है।1319 संक्षेप में डॉ. सागरमल जैन के शब्दों में कहें तो सत्ता के स्तर पर गुण और द्रव्य में अभेद है, किन्तु वैचारिक स्तर पर दोनों में भेद भी है।1320 गण के सम्बन्ध में नैयायिक और जैनमत का अन्तर : नैयायिकों के अभिमत में द्रव्य और गुण में अत्यन्त भिन्नता है। क्योंकि द्रव्य प्रथम क्षण में निर्गुण और निष्क्रिय होता है। द्रव्य के उत्पन्न होने के पश्चात् द्वितीय क्षण में द्रव्य में उससे अत्यन्त भिन्न गुण और पर्याय (कार्य) उत्पन्न होते हैं। द्रव्य में गुण समवाय सम्बन्ध से रहता है। जैनदर्शन के अनुसार द्रव्य गुणों का समुदाय है1321 और गुण द्रव्य के आश्रित रहने वाले धर्म हैं। 1322 द्रव्य और गुण में सर्वथा भेद नहीं है, अपितु कथंचित् ही भेद हैं। यदि समुदाय (द्रव्य) से समुदायी (गुण) भिन्न है तो फिर समुदाय ही नहीं रहेगा। इसलिए जैनों का कहना है कि द्रव्य और गुण 1319 संज्ञा संख्या लक्षणयी पणि, भेद एहोनो जाणी रे - .... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 2/16 1320 जैनदर्शन में द्रव्य, गुण और पर्याय की अवधारणा, – पृ. 65 1321 गुण समुदायो द्रव्यं ........... पंचाध्यायी, गा. 1/73, पूर्वार्ध 1322 द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः .... तत्त्वार्थसूत्र, 5/40 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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