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________________ 450 गुण का आश्रय-आश्रयीभाव पुस्तक और अक्षरों का जैसा होता है। पुस्तक अक्षरों से भिन्न नहीं है तथापि उसे अक्षरों का आधार माना जाता है। 314 अक्षरों को पुस्तक से निकाल देने पर तो पुस्तक नाम की कोई वस्तु ही शेष नहीं रहेगी। एतदर्थ द्रव्य और गुण में कथंचिद् अभिन्नता भी है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर सर्वार्थसिद्धिकार'315, पंचाध्यायीकार1316 आदि ने द्रव्य को गुणों का समुदाय माना है। परन्तु द्रव्य और गुण की पृथक्-पृथक् सत्ता नहीं मानने पर तो उनमें एकमात्र तादात्मय सम्बन्ध ही रह जायेगा। द्रव्य, गुणों का अखण्ड पिण्ड है, इस दृष्टि से दोनों में भेद नहीं होने पर भी समुदाय और समुदायी में कथंचिद् भिन्नता भी होती है। जैसे अन्न के दाने और अन्न के दानों के ढेर में भेद और अभेद दोनों कहा जा सकता है। दानों को ढेर से अलग कर दिया जाय तो ढेर कुछ रहेगा ही नहीं। दानों का समूह ही ढेर कहलाता है। उसी प्रकार गुणों को द्रव्य से अलग कर देने पर द्रव्य की कोई सत्ता ही नहीं बचेगी। अतः गुणों का समूह ही द्रव्य कहलाता है। फिर जिस प्रकार दाने और ढेर एक नहीं है उसी प्रकार गुण और द्रव्य भी एक नहीं है। जैसे एक दाने को ढेर नहीं कहा जाता है, उसी प्रकार एक गुण को भी द्रव्य नहीं कहा जाता है, अपितु गुणों के समूह को ही द्रव्य कहा जाता है। इस दृष्टि से द्रव्य और गुण भिन्न-भिन्न भी हैं। द्रव्य समुदाय है, गुण समुदायी है, द्रव्य अंशी है और गुण अंश है, द्रव्य आधार है और गुण आधेय है।1377 इसलिए जो द्रव्य है वह गुण नहीं है और जो गुण है वह द्रव्य नहीं है। 318 वाचक उमास्वाति ने 'गुणपर्यायवद् द्रव्यम्' कहकर द्रव्य की जो परिभाषा दी है उसमें द्रव्य और गुण–पर्याय में कथंचित् भिन्नता और कथंचित् अभिन्नता दोनों ही परिलक्षित होती है। वतुप् प्रत्यय को जोड़कर द्रव्य को गुण और पर्यायवाला बताया 1314 पंचाध्यायी का विवेचन, -पं. मक्खनलालजी शास्त्री, पृ. 38 1315 तेभ्योऽन्यत्वं कथंचिदापद्यमानः समुदायो द्रव्यव्यपदेशभाक् ............. सर्वार्थसिद्धि, 5/30/600 1316 गुण समुदायो द्रव्यं लक्षणमेतावताप्युशन्ति बुधाः ..................... पंचाध्यायी, गा. 73, पूर्वार्ध 1317 ज्योतिपुंज - जैन दिवाकर, पृ.1 1318 जं दव्वं तं ण गुणो जो वि गुणो सो ण तच्चमत्यादो - प्रवचनसार, गा. 2/16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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